For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अपने ख़्वाबों को खिलाऊँ क्या, पिलाऊँ क्या बताओ " - गज़ल - ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    2122     2122

 

गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं

दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं

 

पतझड़ों की साजिशों से, अब बहारों में भी देखो

हर शज़र मुरझा गया, पत्ते सभी झड़ने लगे हैं

 

अपने ख़्वाबों को खिलाऊँ क्या, पिलाऊँ क्या बताओ

कोई भूखा कोई प्यासा है, सभी मरने लगे हैं

 

जैसे गोली की किसी आवाज़ से भागे परिन्दे

मुफ़लिसी क्या आ गई रिश्ते सभी कटने लगे हैं

 

कुछ सियासी फैसलों से और बाक़ी मज़हबों से

देश वासी ख़ेमों- तबकों में सभी बटने लगे हैं

 

उन खतों का भी सहारा अब कहाँ बाक़ी है मुझको

याद भी ताज़ा नहीं, अब हर्फ़ भी मिटने लगे हैं

 

एक दिन तो धूप चटकीली कभी हम देख पाते

धूप क्या निकली, उधर से अब्र फिर घिरने लगे हैं

 

वाकिये सारे पुराने में बहुत तल्ख़ी भरी थी

क्या करूँ मै सारे नग़्मों में वही ढलने लगे हैं

**************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

************************************** 

Views: 1090

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on December 20, 2013 at 9:52pm

गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं

दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं

shayad ..... फैसले करते लगे हैं .........karne lage hain ....hoga typing mistake huya hai ......shesh kya kahoo.....aap to   jo kahenge gazal hogi......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 9:04pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपको गज़ल पसन्द आयी , गज़ल कहना सार्थक हुआ ॥ सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2013 at 8:54pm

कुछ सियासी फैसलों से और बाक़ी मज़हबों से

देश वासी ख़ेमों- तबकों में सभी बटने लगे हैं

 

उन खतों का भी सहारा अब कहाँ बाक़ी है मुझको

याद भी ताज़ा नहीं, अब हर्फ़ भी मिटने लगे हैं

 

एक दिन तो धूप चटकीली कभी हम देख पाते

धूप क्या निकली, उधर से अब्र फिर घिरने लगे हैं

 बहुत शानदार ग़जल ये तीन शेर तो बहुत ज्यादा पसंद आये ,दिल से बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 8:21pm

आदरणीय नादिर खान भाई , गज़ल की सराहना के लिये और दो शेरों को विशेष पसंद करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया । ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 8:18pm

आदरणीय तपन भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 8:17pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया और सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 8:16pm

आदरणीय अविनाश भाई , उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया और गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by नादिर ख़ान on December 20, 2013 at 8:02pm

जैसे गोली की किसी आवाज़ से भागे परिन्दे

मुफ़लिसी क्या आ गई रिश्ते सभी कटने लगे हैं

 

कुछ सियासी फैसलों से और बाक़ी मज़हबों से

देश वासी ख़ेमों- तबकों में सभी बटने लगे हैं

आदरणीय गिरिराज जी,  बहुत खूब लिखा, शानदार गज़ल ।

Comment by Tapan Dubey on December 20, 2013 at 7:52pm
आदरणीय गिरिराज जी खूबसूरत गजल के लिए बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 7:05pm

सखे गिरिराज  i

क्या बात है ? आप हमेशा दिल में उतर जाते है  i

मुफलिसी क्या आ गयी रिश्ते सभी कटने लगे हैं  i शुभानाल्लाह  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
38 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
20 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service