For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो

ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो
है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो

बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है
रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है
फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो

ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा
ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा
उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो

महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो
कहते हो नही फिर भी क्या-क्या नहीं कहते हो
करते हो सितम खुद पे मुझको भी रुलाते हो

शायद पढ़ा है तुमने मेरे ख़त को अकेले में
खोए हो तभी देखो तुम ख्वाबों के मेले में
है "इश्क" यही जिसको तुम मुझसे छुपाते हो


अमुद्रित एवं अप्रकाशित

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on December 23, 2013 at 11:36pm

बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है 
रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है

ये मेरा इश्क फिर भी तुम किताबी क्यूँ बताते हो

aaj mai bahut hi khush hoo ,,,,,,isliye ki OBO me aane ke baad jitni bhi rachnaye post ki , aur comments me sudhar aur parivartna ka sujhav bhi  diya gaya par ,,,,,kisi  me sujhav likh kar mera margdarshan nahi kiyaa ......aaj  mai avibhoot hooo.....ki apne sudhar ko swayam sujhaya.....hardik dhanyavad...apko ....arun ji................meri aur bhi posts me yadi koi metre dosh ho to ....bataye avashya ......

Comment by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 6:19pm

आ0 अजय जी इस भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई आपको । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:17pm

आदरणीय अजय भाई जी आपकी रचनाओं का भाव पक्ष बहुत सुन्दर होता है प्रवाह में थोड़ी कमी दीखती है. शब्दों को थोडा फेर बदल करने से ये समस्या भी हल हो जाएगी. उदहारण के लिए देखिये आपकी ही ये पंक्ति. सतत प्रयासरत रहें इस रचना हेतु बधाई स्वीकारें.

ये मेरा इश्क फिर भी तुम किताबी क्यूँ बताते हो

Comment by ajay sharma on December 20, 2013 at 9:49pm

pahli baar koshish ki kuch purani jani , anjani yaade / baate taza ho jaye,.....bhali lagi ....dili shukriya ....sabhi sudhijano ka............  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 9:11pm

आदरणीय अजय भाई , मोहब्बत के ज़ज्बे को बहुत अच्छे से बयान किया है , एक अच्छी रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by Tapan Dubey on December 20, 2013 at 7:55pm
क्या बात क्या बात बधाई
Comment by Shyam Narain Verma on December 20, 2013 at 3:34pm
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको …………..
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 1:58pm

अजसी शर्मा जी

बड़े जवां और दिलकश जज्बात हैं i आपको  बहुत बहुत बधाई i

Comment by coontee mukerji on December 20, 2013 at 1:17pm

महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो
कहते हो नही फिर भी क्या-क्या नहीं कहते हो
करते हो सितम खुद पे मुझको भी रुलाते हो........खूब सुंदर...........यह सब बातें कालेज के ज़माने में खूब होती है. शुभकामनाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
22 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service