करवट बदल रहा है कोई
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शर्मसार नहीं हैं हम, हार कर भी ,
हाँ ,सदमे में जरूर हैं , कि-
नींद में करवट, बदल रहा है कोई
जातिवाद का ज़हर
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तुम नीलकंठ कहलाते हो ,
ज़हर कोई, कभी पिया होगा ,
एक बार जातिवाद का ज़हर,
चखकर तो दिखाओ ,
तांडव करने को मजबूर हो जाओगे
सांप का काटा
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सांप का काटा भी मरहम बन जाता है ,
इंसान, इंसान को डसकर जब आता है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय दिलीपभाईजी,
आपकी तीनों क्षणिकायें प्रभावशाली हैं .. . हृदय से बधाई स्वीकारें.
सादर
अति सुन्दर। बधाई।
बहुत सशक्त प्रभावोत्पादक क्षणिकाएं
दूसरी और तीसरी बहुत पसंद आयीं
हार्दिक बधाई.
बहुत ही दमदार क्षणिकाएँ.हार्दिक बधाई
bahad khoobsoorat kshanikaayen....antim vishesh roop se sundr....haardik badhaaee is khoobsoorat lekhan ke liye aadrneey Dilip Mittal jee
आदरणीय , बहुत सुन्दर क्षणिकाये लगीं !!!! आपको बधाई !!!! सांप का काटा विषेश !!!!
बहुत अच्छी क्षणिकायें हैं आदरणीय डॉ मित्तल सर बधाई आपको
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाए हुई है आदरणीय ……। हार्दिक बधाई आपको ,,,,,,सादर
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