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ग़ज़ल : सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ

बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२

-------- 

सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ

मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाकी हैं सीढ़ियाँ

 

तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ

झुक लो जरा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ

 

चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे

जल्दी उसे जमीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ

 

मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की

लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ

 

रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के

हर पग पे एक पैग पिलाती हैं सीढ़ियाँ

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2013 at 2:10pm

आदरणीय धर्मेन्द भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , बहुत कठिन रदीफ को आपने आसानी निबाह लिया है !!!! बधाई स्वीकारें !!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:06pm

क्या बात है सर जी वाह लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद  हाजिर है

जय हो

Comment by Shyam Narain Verma on December 6, 2013 at 11:35am
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको …………..
Comment by Sarita Bhatia on December 6, 2013 at 10:40am

वाह वाह क्या बात 

उम्दा 

लाजवाब 

चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे

जल्दी उसे जमीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ

 

मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की

लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ

 

रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के

हर पग पे एक पैग पिलाती हैं सीढ़ियाँ

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