For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

- दोहावली -

संग हरि किये हरि हुये, दानव ,दानव संग

किंतु न मानव बन सके, कर मानव के संग    

 

कह सुन खाली मन करें, बचे न कोई बात ।

मन को उजला कीजिये, जैसे उजली रात ।।

 

लघुता को गुरुता कहे,लघुता की रख प्यास ।

गुरुता फिर आये नहीं, मत करना तू आस ।।

 

ढाल जिधर है बह गये, ये मुर्दों का ढंग ।

जीवित पहले परख के, तब होवत है संग ।।

  

मन पंछी को बांध रख, डोरी एक बनाय ।

उछले कूदे खींच दे , वापस घर में आय ।।

 

मैं को सबसे जोड़ मत , अलग न जुड़ के होय ।

दुख की जड़ फैलाय जो, वो जीवन भर रोय ।।

 

तन का घाव दिखे मगर,दिखे न मन का पीर ।

बाहर से है ठीक सब , अन्दर से गम्भीर ।।  

 

क्यों सहते बैठे रहें, पीठ करे जो घात ।

अब अंतिम परिणाम तक ,जारी हो प्रतिघात ।।

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 7:04am

आदरणीय शिज्जू भाई , सनातनी छन्द मे केवल दोहा ही थोडा समझ पाया हूँ , सो प्रयास करते रहता हूँ !!! आपको दोहो भाव पसन्द आये , आपको बहुत शुक्रिया !!!!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2013 at 3:42am

नैतिक और ज्ञानवर्धक दोहों के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 3, 2013 at 11:21pm

वाह आदरणीय गिरिराज सर सनातनी छंद में आपको प्रयास करते हुये अच्छा लगा शिल्प की तो मुझे जानकारी  नही है लेकिन भाव अच्छे लगे कोशिश करते रहें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:11pm

आदरणीय सुशील सरन भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया !!!!! आदरणीय आपने मेरा नाम गलत लिख दिया है !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:09pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , सच है , मन मे संतोष है भाई जी , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:07pm

आदरणीय श्याम भाई , दोहों की सरहाना के लिये आपका आभार !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:06pm

आदरणीया कुंती जी ,सराहना और  उत्साह वर्धन वर्धन  के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:03pm

आदरणीय बडे भाई अखिलेश जी , दोहों ही सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!!

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2013 at 7:45pm

aa.Brijesh jee badee hee manmohak aur sandeshaatmak dohavali prastut kee hai aapne....hr doha apne men poorn aur sandeshprerak hai...ati sundr...haardik badhaaee

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 6:33pm

मित्रानुज

क्या सुन्दर दोहे है i

ज्ञानवर्धक भी है i

कहिये मेरे मीत प्रिय , भंडारी  गिरिराज  i

ऐसे दोहे विरच कर , कैसा  लगता आज ?  धन्यवाद मित्र i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service