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गर्म हवा है खूब यहाँ की ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

गर्म हवा है खूब यहाँ की

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2 2  2 2  2 2   2 2

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जो भी मुझसे सम्बंधित है

सुख पाने से वो वंचित है

 

मौन यहाँ है सबसे अच्छा

कुछ कहना अब प्रतिबंधित है

 

मै अधिकार कहाँ से पाऊँ  

कुछ विशेष को आबंटित है

 

गर्म हवा है खूब यहाँ की

आज परिन्दा आतंकित हैं

 

अभी छाँव में धूप है शामिल

सारे सुखों मे दुख किंचित है

 

हरदम अड़चन मुझ तक आई

क्या ? कठिनाई नामांकित है

 

ये कैसी दुनिया है भाई

हर माथा सिकुड़ा, चिंतित है 

मधु भावों से आप सभी के

अब मेरा तन मन सिंचित है

 

***************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:12am

सादर आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 8, 2013 at 12:06am

शुक्रिया , आदरणीय सौरभ भाई जी ,  मै सुधार के लिये इसे भेज दूंगा !!!!  आपका पुनः आभार !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 11:54pm

मैं आपकी इस ग़ज़ल को मुसलसल ग़ज़ल कभी नहीं कहूँगा, आदरणीय. हर शेर मिल कर हालाँकि एक माहौल ज़रूर बना रहे हैं लेकिन, सर, उनके अंदाज़ अलहदे ही हैं. यही तो ख़ासियत है इस ग़ज़ल के शेरों की.

इसी लिए आखिरी शेर के सानी में  पर  मुझे अतुक की तरह लगा.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 10:17pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी सराहना पाना मेरे लिये तमगे से कम नही है ,  सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!! - पर - ऊपर के शे र मे मै लगातार नकारात्मक बातें गिनवाने के बाद मै अंत मे ये कहना चाहता था कि -ये सब तो हैं मेरे साथ पर एक सुखद पहलू भी है मेरे पास वो है आप सब का मधु - भाव , अगर मै अपनी बात कह न पाया हो ऊँ तो मुझे बताइयेगा , मुझे अब  करने में कोई उज़्र नही है !!!! सादर !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 9:12pm

वाह वाह वाह !

ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब !!

मन मुग्ध हुआ झूम-झूम गया आदरणीय..

आखिरी शेर के सानी का पर .. इसे अब करें तो कुछ और बात बने. आप देखियेगा. या, शायद आप ही सही हों ..

सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:32pm

आदरणीय वीनस भाई , आपका गज़ल पर आना सुखद अनुभव होता है , !!!! गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:29am

जो भी मुझसे सम्बंधित है

सुख पाने से वो वंचित है

 

मौन यहाँ है सबसे अच्छा

कुछ कहना अब प्रतिबंधित है

 

ये कैसी दुनिया है भाई

हर माथा सिकुड़ा, चिंतित है 



वाह वा विशेष बधाई ... शानदार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2013 at 6:22pm

आदरणीय  एडमिन जी , इस शे र मे तकाबुले रदीफ दोष होने के कारण

शामिल छाँव में धूप अभी है  ----- इस मिसरे को -
छाँव, धूप में अभी है शामिल -  करने की कृपा करें ।  सादर !

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2013 at 6:12pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!! पर - के विषय मे सोच रहा हूँ भाई ,  गलत लगा तो सुधार लूंगा !!!! आपका आभार !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2013 at 5:55pm

आदरनीय नीलेश भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , तकाबुले रदीफ मेरे ध्यान मे नही  था , आपने जैसा कहा है  सुधार कर लूंगा !!!!

बह्र की छूट बताने के लिये अलग से आपका धन्यवाद !!!! सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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