For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल-अब मैं थक कर हार रहा हूँ--उमेश कटारा

बह्र--222 221 122

लुट लुट कर बदहाल रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ 

जीवन से ता उम्र लडा मैं
हथियारों को डाल रहा हूँ

किस्मत ने भी खूब नचाया

मैं पिटता सुरताल रहा हूँ

सब हमको ही बेच रहे थे

सस्ता बिकता माल रहा हँ


मकडी मरती आप उलझकर

खुदको बुनता जाल रहा हूँ

मरजाऊँ तो आँख न भरना
मैं अश्कों का ताल रहा हूँ 

कर बैठा मैं प्यार अनौखा
रो रोकर बे-हाल रहा हूँ

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 998

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 8:04am

पुन: आप की ग़ज़ल पढ़ी ....आज काफ़िया ठीक लग रहा है .... मै अपनी पूर्व में की गई टिप्पणी वापस लेता हूँ ..क्षमा सहित...
सादर 
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 2, 2013 at 3:53am

ग़ज़ल पर इस सार्थक बहस चलाने के लिए गुनीजनों का आभार. ग़ज़ल तो प्रथम दृ्ष्ट्या सही है. इस ग़ज़ल को बह्र फेलुन फेलुन में ही रखना था जिसकी आखिरी मात्रा फ़ा होती है.

शुभेच्छाएँ

Comment by विजय मिश्र on November 26, 2013 at 4:30pm
भावप्रधान और प्रवाह का निर्वाह करती एक आनन्ददायी रचना के लिए अनेकानेक बधाई उमेशजी .

"मरजाऊँ तो आँख न भरना
मैं अश्कों का ताल रहा हूँ --- शब्दों ने भाव के शमाँ बाँध दिए हैं ,बहुत खूब .
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 1:59pm

आदरणीय उमेश जी ............................जीवन से ता उम्र लडा मैं
हथियारों को डाल रहा हूँ...वाकई जंग क्या मसलों का हल देगी ..हथियारों की जंग से सचमुच तौबा कर लेना चाहिए लेकिन कलम की आपकी ये जंग जारी रहे ....पिछली ग़ज़ल में काफिया की मेरी इसी भूल पर आदरणीय शिज्जू जी और आदरणीय वीनस जी का स्नेहिल मार्गदर्शन मुझे मिला था ....आदरणीय गिरिराज जी बिलकुल सही बयां कर रहे हैं ..मैं भी उनकी बातों से इत्तेफाक रखता हूँ ..बतौर एक रचना अपने सुंदर भावों के लिहाज से मुझे बहुत पसंद आयी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 6:42pm

आदरणीय , मठ्ठा , झगड़ा, पर्दा  ये हर्फे क़वाफी है जिसमे स्वर का निर्वाह किया गया है !!!! इसी तरह ,जहाँ ...आस्माँ -----वहाँ- ये भी हर्फे क़वाफी है जिनमे आँ  स्वर का निरवाह किया जा रहा है !!!

अब मैं थक कर हार रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ  ---- आपके इस मतले मे अ  स्वर का निर्वाह हो रहा है जिसे क़ाफिया नही माना जाता !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 6:35pm

आदरणीय उमेश भाई ,

मुहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है -- इस शेर मे काफिया -आ  है जिसका निर्वाह किया गया होगा गज़ल मे , और डाल देती है

रदीफ है !! -- झगडा = झ + ग + ड़ + आ  और मठ्ठा = म+ठ+ठ+ आ - इस प्रकार आ काफिया हो रहा है !!

कभी किसी को मुकम्म्ल जहाँ नहीं मिलता 
कहीं जमीं तो कहीं आस्मां नहीं मिलता ------      इस शेर मे , नही मिलता रदीफ है और  आँ काफिया है !!!

आपके शे र मे ------ रहा हूँ ,  रदीफ  है  , और काफिया नही कुछ भी नही है , अ ( स्व्रर ) को काफिया नही माना जाता !!! 

अब मैं थक कर हार रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ

                                 कुछ समझा पाया हूँ  या नही  मै नही जानता ! बताइयेगा !

Comment by umesh katara on November 25, 2013 at 6:24pm

आदरणीय राना साहब की इसी गजल का अगला शेर है 
----------------------------------------------------
तवायफ की तरह अपने गलत कामों के चेहरे पर
हुकूमत मन्दिर औ मस्जिद का पर्दा डाल देती है 

--------------------------इस गजल में झगडा----मट्ठा---पर्दा---कफिया है और   रदीफ --- डाल देती है .....इस तरह से है निदा फाजली साहब की गजल में रदीफ नहीं मिलता है और कफिया ---जहाँ ...आस्माँ -----वहाँ---इस तरह से हैं

Comment by umesh katara on November 25, 2013 at 6:01pm

आदरणीय--मुनब्बर राना साहब की गज़ल का मतला शेर है 

मुहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है 
-----------------------------------------------------------
निदा फाजली साहब की गजल का मतला

कभी किसी को मुकम्म्ल जहाँ नहीं मिलता 
कहीं जमीं तो कहीं आस्मां नहीं मिलता
--------------इनमें मात्राओं पर ही काफिया लिया गया है

Comment by umesh katara on November 25, 2013 at 5:40pm

आदरणीय निलेश जी गोपाल नारायन जी ,गिरिराज जी काफिया को मात्रा पर नहीं लिया जा सकता है क्या कृपया मार्गदर्शन करायें मैंने इसमें आअ काफिया लिया था जैसे हार,डाल ,,काट , मार ,क्या मात्रा पर काफिया लेना गलत है कृपया कर राय दें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2013 at 4:08pm

भावपूर्ण है i

निलेश जी की राय आपके

लिए महत्वपूर्ण है i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service