मॉं
एक शब्द
एक संबोधन
एक रिश्ता
क्या हैं,मॉं
नहीं समझ पाया
नहीं जान पाया
नीमअंधकार से निकला मैं
खुली पलकें
मखमली गोद में
सिर पर स्नेह की छाया
सीने से लग कर
क्षुधार्त की शांति
क्या यही हैं मॉं
या मॉं हैं
हाड़ मॉंस की एक पुतली
जिसके अनेकों रूप
जाने अंजाने कितने
बेटी,बहन,बहू पत्नी
आसानी से बनते रिश्ते
मगर मॉं
दिर्घावधि तक
वेदना,पीड़ा,कष्ट
सह कर
एक सुख की आशा ,
तोतले जुबान से
म, म, मा ,मॉं
सुनने की आशा
जीवन की निराशा से
उभरने की आशा
शायद अखंड
यही है मॉं
त्याग,बलिदान,कर्तव्य
और नेह की एक रमणी
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी की प्रस्तुति
Comment
सच! माँ तो माँ ही होती है, अति सुंदर भाव लिए हुयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अखंड जी
आदरणीये पाठक जी आप जो कहना चाहते है स्वतंन्त्र रूप से कहीये आप के विचारो का स्वागत है। एवं सभी आदरणीय के विचारो का स्वागत है जैसे की कई चीजों को आदरणीये गोपाल श्रीवास्तव जी ने बताया उसके अनुसार मैं परिवर्तन लाने का प्रयास करता हूँ, आप के केवल यह कह देना कि मैं कुछ नहीं कहुगॉं उचित नहीं होगा आपका अखंड गहमरी
सुन्दर रचना के लिए बधाई. आदरणीय अखंड जी, कुछ शब्द विशिष्ट सन्दर्भों में ही प्रयुक्त होते हैं, आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ने संकेत कर ही दिया है. जैसे जुल्फ का अर्थ केश राशि है , इसका प्रयोग प्रेयसी के लिए किया जाता है, बिटिया के लिए नहीं. सादर..........
आदरणीय भाई जी आपकी रचना माँ शब्द से प्रारम्भ है अतः ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा …रचन पोस्ट करने के पहले चार पाँच बार ज़रूर पढ़ लिया करे…… सादर
आदरणीय अखण्ड भाई , माँ तो बस माँ ही हो सकती है !!! माँ की महिमा गाती आपकी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!
वाह अखंड जी
शायद अखंड यही है माँ
त्याग बलिदान कर्त्तव्य
और नेह की एक रमणी बस इतना अनुरोध है की जब जिक्र माँ का हो तो रमणी शब्द से परहेज करें i
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