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रेत का घरौंदा....................... ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

समंदर किनारे रेत पर

चलते चलते यूं ही

अचानक मन किया

चलो बनाए

सपनों का सुंदर एक घरौंदा

वहीं रेत पर बैठ

समेट कर कुछ रेत

कोमल अहसास के साथ

बनते बिगड़ते राज के साथ

बनाया था प्यारा सा सुंदर 

एक घरौंदा................

वही समीप बैठ कर

बुने हजारों सपनो के

ताने बाने जो

उसी रेत की मानिंद

भुरभुरे से ,

हवा के झोंके से उड़ने को बेताब

प्यारा घरौंदा ..............

अचानक उठी लहर

बहा ले गई वो

प्यारा सुंदर घरौंदा

जिसको सींचा था

सहलाया था , प्यार से

दुलराया था

बिखरे पड़े उन अवशेषों को

समेट फिर चल दी

उन्हे दुबारा सवारने की खातिर

प्यारा सा सपनों का घरौंदा..................

जो शायद सपने ही है

जो कभी सच होते है

कभी नहीं भी

मन की संकरी गलियों मे

यूं ही घुमड़ते हुए बादल से

सपने .............

रेत के घरौंदे ही तो है ...................... ।

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

अन्नपूर्णा बाजपेई

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 9:24am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी इस खूबसुरत रचना के लिये बधाई

Comment by Neeraj Neer on November 15, 2013 at 8:32am

बहुत कोमल भाव, जीवन भी तो रेत  के घरोंदे की तरह ही होता है ...

Comment by annapurna bajpai on November 15, 2013 at 12:10am

आदरणीय डॉ गोपाल दास जी , सुशील जी , भण्डारी जी , डॉ आशुतोष जी , मीना जी , अरुण शर्मा जी , नीरज मिश्रा जी , केवल भाई जी , बृजेश जी , जितेंद्र जी आप सभी का हार्दिक आभार । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 14, 2013 at 11:08pm

शायद! सपनों के टूटने और फिर से बुनने के मध्य ही जीवन चलता रहता है, रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by बृजेश नीरज on November 14, 2013 at 8:30pm

वाह! कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति है! कांसेप्ट बहुत ही अच्छा है! काश! आपने रचना को और समय दिया होता! लाजवाब रचना होती.

बहरहाल, इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 14, 2013 at 8:17pm

आ0 अन्नपूर्णा जी  वाह!......

मन की संकरी गलियों मे

यूं ही घुमड़ते हुए बादल से

सपने .............

रेत के घरौंदे ही तो है ...................... ।

....  अतिसुंदर रचना।  हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Neeraj Nishchal on November 14, 2013 at 7:39pm

एक सुन्दर से एहसास में डूबी इस कविता के लिए आपको
बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:23pm

बेहद सार्थक प्रस्तुति आदरणीया वस्तुतः यही तो जीवन है बहुत सुन्दर सुकोमल भाव हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on November 14, 2013 at 11:59am

बहुत सुन्दर, दिल को छू लेने वाली रचना | बहुत बहुत बधाई आ० अन्नपूर्णा जी | सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2013 at 11:38am

भावुक बना देने वाले ऐसी शसक्त रचना जो सीधे पाठक के दिल पे अपना प्रभाव छोडती है 

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