For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं (गीत )

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 

कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं 

 

दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे

अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों  में ढल जाते हैं

 

मेरी कलम की  स्याही पाकर  , रूप गीत का  है सँवरा

रस छंदों से मुक्तक मिलकर, काव्य कलष छलकाते हैं

 

साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते

मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं

 

पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर

कभी ग़मों  की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं

 

मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा  

स्वर  वीणा  के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं

 

दोहों छंदों की माटी में ,नव अँकुर हैं जब-जब फूटे

गीतों की सरिता में बहकर, मन सिंचित कर जाते हैं  

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं

**************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 871

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2013 at 8:41am

प्रिय राम शिरोमणि जी ये गीत आपको पसंद आया दिल से आभार आपका 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 12, 2013 at 8:18am

सुंदर गीत रचना पर, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 7:03am

आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत सुन्दर गीत की रचना हुई है !!!!! मेरी अब तक की पढी आपकी रचनाओं मे सर्व श्रेष्ठ रचना !!! आपको बहुत बहुत हार्दिक बधाई !!!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 11, 2013 at 11:41pm

बेहद सुंदर भाव, अति सुंदर गीत बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 11, 2013 at 11:34pm

कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं...

क्या कहना , सुंदर भाव लिए सुंदर गीत , हर पंक्ति लाजवाब,  हार्दिक बधाई आ. राजेशकुमारीजी।

Comment by annapurna bajpai on November 11, 2013 at 10:59pm

आ0 राजेश कुमारी जी अत्यंत सुंदर गीत बधाई आपको । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2013 at 10:27pm

उमड़ उमड़  कर जो भी  बादल भावों  के आ जाते है

वह  ही प्रिय  कविता  में  आकर सुन्दर रस बरसाते है  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 11, 2013 at 9:15pm

साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते

मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं

स्वतः निस्सृत होते भाव-शब्दों नें सुन्दर अभिव्यक्ति पाई है...

हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश जी  

Comment by ram shiromani pathak on November 11, 2013 at 5:58pm

पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर

कभी ग़मों  की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं

 

मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा  

स्वर  वीणा  के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं///वाह बहुत ही सुन्दर 

बहुत ही सुन्दर गीत आदरणीया राजेश कुमारी जी  ....

बहुत बहुत बधाई आपको सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 11, 2013 at 12:29pm

प्रिय प्रवीण मलिक जी आपको गीत पसंद आया दिल से आभारी हूँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service