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ग़ज़ल-निलेश 'नूर'- चाँद सूरज और सितारे आ गए

२१२२, २१२२, २१२  
चाँद सूरज और सितारे आ गए,
ख्व़ाब में क्या क्या नज़ारे आ गए.    
.

ख़ूब मौका डूबने का था मिला,
और हम फिर भी किनारे आ गए. 
.

जब नज़र की बात नज़रों नें सुनी,  
दरमियाँ क्या कुछ इशारे आ गए.
.

है समाई धडकनों में धडकनें,  
पास वो इतने हमारे आ गए.
.

जब मिला ग़म या ख़ुशी कोई मिली,
आँखों में दो अश्क़ खारे आ गए.   
.
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 779

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 14, 2013 at 6:44am

धन्यवाद 

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 4:42am

बहुत सुंदर गज़ल कही है आ0 नीलेश जी....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2013 at 10:18pm

सादर आभार, आदरणीय

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 13, 2013 at 10:01pm

शुक्रिया सभी को ... व्यस्तता के चलते समुचित आभार प्रदर्शित नहीं कर पाया इसका खेद है ... आशा है आप लोग खुले हरध्य से क्षमा के देंगे ... आदरणीय सौरभ जी .. आप का सुझाव आज्ञा तुल्य है...मूल प्रति में संशोधन किये लेता हूँ 
आभार 

Comment by विजय मिश्र on November 13, 2013 at 5:52pm
वाकेई एक बहुत मीठी प्यारी सी गाज़ल .खासतौर से ये मिसरा तो दिलकश है -
" जब नज़र की बात नज़रों नें सुनी,
दरमियाँ क्या कुछ इशारे आ गए. " -- शुक्रिया निलेशजी
Comment by अरुन 'अनन्त' on November 13, 2013 at 3:22pm

आदरणीय निलेश जी कमाल की ग़ज़ल हुई है सभी शेर खूबसूरत बेमिसाल हैं ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by vijay nikore on November 13, 2013 at 5:14am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल है, बधाई, आदरणीय नीलेश जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2013 at 11:01pm

आपकी इस ग़ज़ल पर मन झूम गया आदरणीय नीलेश नूरजी. वाह वाह वाह !

यह अवश्य है कि और  को औ’ ही रहने देना था. औ’ खूब मान्य है. बाकी तो फिर से वाह वाह !
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 12, 2013 at 10:40pm

शुक्रिया सभी का ... आभार 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 12, 2013 at 9:39pm

आदरणीय इस शानदार गजल हेतु बधाई सप्रेषित करता हूँ।
- ख़ूब मौका डूबने का था मिला,
और हम फिर भी किनारे आ गए. . Yah attitude, shubhaanallaah.

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