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गिरा रुपैया
बढती मँहगाई
कौन खेवैया !..........१

भ्रष्ट समाज
कलुषित है सोच
बेमानी आज. !..........२

शिशु मुस्कान
खिले अन्तकरण
फूल समान !.............३

अक्स तुम्हारा
चमकता चन्द्रमा
सबका प्यारा !............४

भगवा वस्त्र
ठगी है मानवता
उठाओ शस्त्र ! ...........५

विषाक्त मन
निकालो समाधान
व्याकुल हम !.............६

सोचो तो जरा
सुरक्षित कहाँ धी
बेमौत मरा ! ..............७

मौलिक व अप्रकाशित

प्रवीन मलिक................

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Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 11:24am

आ० परवीन जी 

बहुत खूबसूरत हायकू 

अंतिम हायकू पर एक बार पुनः गौर कर लें..

हार्दिक शुभकामनाएं ..

Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:34pm
सादर धन्यवाद अरुन जी हौसलाअफजाई के लिए ....
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:33pm
आदरणीय लक्षमन लाडीवाला जी सादर आभार आपके स्नेह के लिए ...
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:31pm
आशिष नैथानी जी सादर धन्यवाद ...
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:30pm
रविकर जी
सादर धन्यवाद
आप पधारे !!

पाकर स्नेह
प्रसन्न हूँ बहुत
गुणीजन का !!
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:23pm
आदरणीय महिमा जी बहुत बहुत धन्यवाद ..
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:22pm
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी हृदयतल से आभार समय देने के लिए ..
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:20pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी हार्दिक धन्यवाद !
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 23, 2013 at 4:00pm

वाह आदरणीया हाइकू पर आपका प्रयास बेहद सुन्दर है सही दिशा में है प्रयासरत रहें इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2013 at 3:50pm

सुन्दर रचे                    गिरा रुपैया 

सभी है सामयिक            बढ़ गया डालर 

मन को भाये                  किसका दोष 

हार्दिक शुभकामनाए परवीन मालिक जी | सादर 

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