For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,

भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई शस्य से वंचित हुआ,
              (शस्य = अन्न)
क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,

सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1647

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:39am

आदरणीय अभिनव अरुण भाई जी आपका हृदयतल से हार्दिक आभार आपकी टिपण्णी ने ग़ज़ल को सार्थक किया, आपका सुझाव अत्यंत सुन्दर है आदरणीय यदि नारियों की जगह बेटियां कर दें तो सुन्दरता के साथ साथ स्पष्ठता और अधिक हो जाएगी. आपसे इसी तरह के सहयोग की अपेक्षा सदैव रहेगी, आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:36am

हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:36am

बहुत बहुत धन्यवाद अखिलेश जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:36am

आदरणीय आशुतोष सर हार्दिक आभार आपका.

Comment by राज़ नवादवी on September 16, 2013 at 8:53am

हिन्दी तत्सम/तद्भव शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कम ही लोग ग़ज़ल की गरिमा और ओज को बनाए रख सके हैं.... बरबस दुष्यंत की ग़ज़लों का ख़याल हो आया. बधाई हो. 

Comment by vijay nikore on September 16, 2013 at 4:13am

बहुत खूब। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 1:46am

अच्छी ग़ज़ल कही है
सारे अशआर पसंद आए ...
मतला थोडा और सरल हो सकता है मिसरों में रब्त कुछ और हो तो लुत्फ़ बढ़ जाए

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 11:58pm

बहुत सुंदर भाव, बढ़िया गजल,बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण अनंत जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2013 at 11:19pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई प्रिय अरुन शर्मा   सभी शेर बढ़िया हुए ये शेर तो दिल में उतर गया ,

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,....

 

तहे दिल  से दाद कबूलें  हाँ अभिनव जी की बात से मैं भी सहमत हूँ बेटियों ज्यादा अच्छा रहेगा 

Comment by कल्पना रामानी on September 15, 2013 at 8:45pm

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,....

bahut sundar...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service