For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे...

कुछ इस तरह से, मेरी ज़िन्दगी का पल गुज़रे ।
ह्रदय की पीर, मेरे आंसुओं में ढल गुज़रे ।।

तुझे मै देख के लिक्खूं , या सोच के लिक्खूं ।
कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे ।।

यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।

वो तेरा दर की जहाँ हम बिछड़ गए थे कभी ।
हो के हर रोज़ उसी दर से, ये पागल गुज़रे ।।

वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था ।
ये एक दिन, की तेरे गम में रो के पल गुज़रे ।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 13, 2013 at 7:09pm

1212       1212       1212          22

कुछ इस तरह से, मेरी ज़िन्दगी का पल गुज़रे । 

1212         1212          12 12          22
ह्रदय की पीर, मेरे आंसुओं में ढल गुज़रे ।।

1212         1122         1212           22 

तुझे मै देख के लिक्खूं , या सोच के लिक्खूं ।

1212         1222         1212          22
कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे ।।

2122                     1121             2121    222     

यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।

वो तेरा दर की जहाँ हम बिछड़ गए थे कभी ।
हो के हर रोज़ उसी दर से, ये पागल गुज़रे ।।

वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था ।
ये एक दिन, की तेरे गम में रो के पल गुज़रे ।।

प्रिय भाई, आपकी ग़ज़ल बहुत मिहनत के बाद बनी होगी, मानता हूँ. लेकिन पढने में अटकाव इतना जियादा है की मज़ा किरकिरा हो जाता है. मात्राएँ भी बहुत गिरानी पड़ती है. कई जगह तो बहर में आ नहीं पता. कृपया मार्ग दर्शन करें.

यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को- -- मिस्ररा सही अर्थ नहीं दे रहा. पहली बात तो धड़कन लिखने से दिल का ही बोध होता है. इसलिए दिल लिखना जरूरी नहीं है और दूसरी बात दिल की धडकन बंद होती है गुजरती नहीं है   
वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था – वीर और सिकंदर के बीच की दूरी खटकती है

पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे – इस मिसरे में “क” का तकरार(तानाफुर सौती ) बहुत है गुस्ताखी माफ़

मैंने इसे दूसरी बहर पर सजाने की कोशिश की है. शायद पसंद आये

२२१      २१२१       १२२१       २१२

तेरा दर्द मेरे दिल से गुजर  जाए इस  तरह = तर दर द  मेर दिल स   गु जर जा य   इस त रह

इस जिंदगी का पल यूँ संवर जाए इस तरह 

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 12:30pm

बहुत सुन्दर भाव! आपको हार्दिक बधाई!
आपकी रचना बहर में तो नहीं लगती। कृपया मार्गदर्शन करें।

Comment by vandana on September 13, 2013 at 6:22am

सुन्दर भाव !!!

Comment by Parveen Malik on September 12, 2013 at 9:58pm
सुंदर भावों से सजी गजल ... बधाई !
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 12, 2013 at 4:41pm

दिल की भावनाओ का एक बेहतरीन ज्वार , बधाई आपको 

Comment by rajveer singh chouhan on September 12, 2013 at 2:34pm


यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।

बधाई हो श्रीमान्

 बहूत ही सुन्दर रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service