For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr Lalit Kumar Singh
Share on Facebook MySpace

Dr Lalit Kumar Singh's Friends

  • गिरिराज भंडारी
  • Dr Babban Jee
  • D P Mathur
  • Ketan Parmar
  • annapurna bajpai
  • डॉ नूतन डिमरी गैरोला
  • वेदिका
  • ASHISH ANCHINHAR
  • Saurabh Pandey

Dr Lalit Kumar Singh's Groups

 

Dr Lalit Kumar Singh's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Jamui
Native Place
jamui
Profession
doctor
About me
a learner of gazal

Dr Lalit Kumar Singh's Photos

  • Add Photos
  • View All

Dr Lalit Kumar Singh's Blog

रूह भर कर दे

मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे

पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे

 

चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो  

मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे

 

कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी

सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे

 

कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर 

मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे

 

तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा

तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे

 

तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ;…

Continue

Posted on August 27, 2013 at 5:51pm — 15 Comments

पिघलना चाहता है

बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है

ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है

 

रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी

जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है

 

तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को

ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है

 

जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो  

जरा सी आंच  तो दे दो पिघलना चाहता है

 

भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर

जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है

बशर=…

Continue

Posted on August 25, 2013 at 9:44pm — 9 Comments

सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ

 

जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही

मौत आयी तब कही जलसा हुआ

 

रोटियां सब  सेंकने में थे लगे

घर किसीका देखकर जलता हुआ

 

जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे

आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ

 

चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को

इक शजर बस फूलता-फलता हुआ 

               

बिस्मिल = ज़ख्मी 

 

मौलिक और अप्रकाशित 

Posted on August 10, 2013 at 6:39am — 16 Comments

भूल जाने का हुनर आता नहीं

दोस्त  बनकर भूल  जाने का हुनर आता नहीं

लोग  कहते  हैं के  दस्तूरे  सफ़र आता नहीं

 

जब रहम  की  आस में दम तोड़ता है आदमी

क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं

 

दरहकीकत  छांव  दे  जो इस जहाँ की धूप से

अब हमारे  ख्वाब  में भी  वो शजर आता नहीं

 

रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को

वक्त जब  माकूल  रहता, क्यों समर आता नहीं

 

जब मुकाबिल तोप  की जद में बरसती आग हो

फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता…

Continue

Posted on August 7, 2013 at 5:54am — 7 Comments

Comment Wall (3 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 10:11am on September 12, 2013,
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
said…
दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं
लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं

जब रहम की आस में दम तोड़ता है आदमी
क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं

दरहकीकत छांव दे जो इस जहाँ की धूप से
अब हमारे ख्वाब में भी वो शजर आता नहीं ------------ वाह आदरणीय ललित जी मज़ा आ गया , क्या बात कही !!
At 10:42am on June 28, 2013, vijay nikore said…

आदरणीय ललित जी:

मैं आपकी रचनाओं को दिल्चस्पी से पढ़ता हूँ, आप अच्छा लिखते हैं। आपके और मेरे style भिन्न हैं, और मैं भविष्य में आपके कहे पर गौर करूँगा।

सादर,

विजय निकोर

At 6:52pm on June 27, 2013, Dr Babban Jee said…

Respected Sir

Please accept my heartiest congratulations for your all creations. 

Regards

Babban Jee

 

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service