For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रोज़ा, नमाज़, हज औ तिलावत न कर सका

रोज़ा, नमाज़, हज औ तिलावत न कर सका
अपने वजूद की मैं हिफाज़त न कर सका

दैरो हरम में आ के तो सजदा किया ज़रूर
लेकिन कभी मैं दिल से इबादत न कर सका

बिकता रहा ज़मीर भी कौड़ी के भाव में
मैं चाहकर भी इसकी हिफ़ाज़त न कर सका

तेरे क़दम भी रुक गए उल्फत की राह में 

मै भी अकेला घर से बग़ावत न कर सका

तेरे बदन में देखकर पाकीज़गी की आग 
कोई भी शख्स छूने की ज़ुर्रत न कर सका

मैख़ाने में गुज़ार दी 'साहिल' ने सारी उम्र
साक़ी के दिल पे फिर भी हुकूमत न कर सका

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on September 4, 2013 at 6:04pm

सुंदर कहन, प्रस्‍तुति बहुत अच्‍छी लगी, सादर

Comment by vijay nikore on September 4, 2013 at 1:44pm

गज़ल अच्छी बनी है। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 9:52am

बहुत ग़ज़ल .. बधाई स्वीकारें

Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:43pm

तेरे क़दम भी रुक गए उल्फत की राह में 

मै भी अकेला घर से बग़ावत न कर सका..wah!

Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:42pm

दैरो हरम में आ के तो सजदा किया ज़रूर 
लेकिन कभी मैं दिल से इबादत न कर सका...wah!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 8:28pm

तेरे बदन में देखकर पाकीज़गी की आग 
कोई भी शख्स छूने की ज़ुर्रत न कर सका----इस शेर ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है ,बहुत बढिया ग़ज़ल कही है सुशील जी दिल से बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on September 3, 2013 at 6:53pm

इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 4:38pm

अति सुंदर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय । 

Comment by Shyam Narain Verma on September 3, 2013 at 3:07pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by विजय मिश्र on September 3, 2013 at 2:35pm
मित्र गिरिराजजी ! पूरी गजल में मुझे इसी मिसरे के अश'आर से शिकायत थी ,दिल ही दिल में ,आपने इसकी ही तारीफ़ कर दियी . हालात कितने भी ब्द से बदतर क्यूँ न हो जाएँ ,इंसानी तौर पर हमें अपने जमीर पर आखिरी साँस तक कायम रहना चाहिए . यही बस इंसानियत की पहचान और उसका सरमाया है . जिंदगी की ल्ज्ज्तें महफूज रहतीं हैं .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service