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ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही -- ग़ज़ल (राज )

दीवार तग़ाफुल  की  ये ढाओ  तो सही

इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही

 

आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें

इस ओर  जरा हाथ बढ़ाओ  तो सही 

 

हैरान परेशान खड़े हो इस कदर 

ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही

 

मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश 

सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही

 

वीरान निगाहों  में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल

अशआर  गुरेज़त  के सुनाओ तो सही

 

तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए

इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही

 

मैं राज़  छुपा  दिल में ही रख लूँगी सदा

पर्दा –ए- हकीक़त को उठाओ तो सही

 

**********************************

तगाफ़ुल  =उपेक्षा 

रिफ़ाकत= दोस्ती.

गुरेज़त= विरक्ति

तकारुब= समीपता

तामीर =निर्माण

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by vandana on September 3, 2013 at 6:47am

तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए

इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीया राजेश जी 

Comment by shubhra sharma on September 2, 2013 at 11:00pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,
// आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें
इस ओर जरा हाथ बढ़ाओ तो सही//
.....बहुत खूब ,तहे दिल से बधाई

Comment by राज़ नवादवी on September 2, 2013 at 10:25pm

"आदरणीया राजेश ही ,  मक्ते के शेर में 'पर्दा –ए- हकीक़त' का मानी हुआ ' हकीक़त का पर्दा'. इस लिहाज़ से 'का' का इस्तेमाल दो बार हो गया है. (दूसरे) 'का' को 'को' करने से बात बन जाएगी.…


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 2, 2013 at 10:06pm

ऐसा लग रहा है राज़ दीदी आपने वज्न २२ ११२२ २१२२ २१२ लिया है

//मैं राज़ छुपा दिल में ही रख लूँगी सदा
पर्दा –ए- हकीक़त का उठाओ तो सही//


वाह तखल्लुस का खूबसूरती से इस्तेमाल किया है ग़ज़ल भी अच्छी है दाद क़ुबूल करें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 2, 2013 at 9:50pm

वजन क्या है आदरणीया ? 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2013 at 8:31pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई उत्साह वर्धन हेतु   दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2013 at 8:28pm

केवल प्रसाद जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by ram shiromani pathak on September 2, 2013 at 8:01pm

 

मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश 

सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही//वाह वाह 

सुन्दर ग़ज़ल  आदरणीया राजेश कुमारी जी //हार्दिक बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 2, 2013 at 7:55pm

आ0 राजेश कुमारी जी,  सादर प्रणाम!   वाह..वाह..!  लाजवाब, बेहतरीन गजल।  दिली मुबारकबाद सहित ढेरों दाद कुबूल करें।  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2013 at 3:43pm

आदरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,इस उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभार आपका |

कृपया ध्यान दे...

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