For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! मंदिरों की सीढि़यां !!!

दर्द हृदय मे समेटे
नित उलझती,
आह! भरतीं
मंदिरों की सीढि़यां।
कर्म पग-पग बढ़ रहे जब,
धर्म गिरते ढाल से
आज मन
निश-दिन यहां
तर्क से
अकुला रहा।
घूरते हैं चांद.सूरज,
सांझ भी
दुत्कारती।
अश्रु झरने बन निकलते,
खीझ जंगल दूर तक।
शांत नभ सा
मन व्यथित है,
वायु पल-पल छेड़ती।
भूमि निश्छल
और सत सी
भार समरस ढो रही।
ठग! अडिग
अविचल ठगा सा,
राह प्रतिदिन देखता।
कब? कहां? कैसे मिलेंगे?
आत्मा के देवता!
बस! शिशिर में
कांपती रूह,
धर्म तन में हाड़ सी।
रात के सपने भयंकर,
भव में बेड़ा डूबता।
फिर मलिन बस्ती में होता,
दूध-जल से
अर्चना।
आंख खुलती
शोर होता,
पैर से कुचली गयी।
सोच! मेरी देह कैसी--?
संगमरमर--- हाय!
तिल-तिल मिट रही।
ऐ! मेरे गुरूवर बता दें,
आत्मा ये पूछती,
मुझसे बनते घर-शिवालय
कोटि देवी देवता।
आप भी तन-मन रमे हैं,
पैर निश-दिन
चूमती।
है मेरा ये भाग्योदय!
या कहानी क्रूर सी।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 31, 2013 at 8:36pm

आ0 प्राची मैम जी, आपके अपार स्नेह, उत्साहवर्धन और यथोचित सुझाव हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
ठग! अडिग.........ठग.......मन के लिए उपयोग किया गया है।
अविचल ठगा सा,............यहाँ ठगी सी होना चाहिये .......ठग पुल्लिंग है।
राह प्रतिदिन देखता।........और यहाँ भी देखती .......ठग पुल्लिंग है।
फिर मलिन बस्ती में होता,........यहाँ भी होती ही उपयुक्त लग रहा है ....वाक्य पटुता के लिहाज से।
दूध.जल से
अर्चना।
....आपका सुन्दर व समुचित मार्गदर्शन शिरोधार्य है। मैं अवश्य ही इस पर कार्य करूंगा। एक बार आपका पुनः हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 31, 2013 at 8:20pm

आ0 भण्डारी भाई जी,   आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 31, 2013 at 8:18pm

आ0 विवेक भाई जी,  आपने भावो के अन्तरद्वन्द को समझा, वास्तव में हमारे संस्कार निष्क्रीय से हो गये हैं।  जिसके कारण हम किसी  के दर्द और उसके सम्मान पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं।  फलतः हमें क्षति उठानी ही पड़ती है। आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 4:00pm

सुंदर भाव से सुसज्जित रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय केवल जी

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 3:02pm

अत्यंत सुंदर भाव प्रणवता के कविता का संयोजन हुआ है, आदरणीय केवल भाई जी आपको बहुत बधाई ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 2:33pm

मंदिर की सीढ़ियाँ...

उनका मानवीकरण और भाव्प्रस्तुतिकरण बहुत ही खूबसूरती और संवेदनशीलता के साथ हुआ है...इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई 

ठग! अडिग
अविचल ठगा सा,.........................यहाँ ठगी सी होना चाहिये 
राह प्रतिदिन देखता।.......................और यहाँ भी देखती 

फिर मलिन बस्ती में होता,...............यहाँ भी होती ही उपयुक्त लग रहा है 
दूध-जल से
अर्चना।

अभिव्यक्ति का भाव प्रवाह विन्यास सब संतुलित हैं किन्तु अंतिम बंद कुछ और वक़्त मांगता है... कुछ और सशक्त भाव की अपेक्षा रखता है (भाव, कथ्य, विन्यास ) हर दृष्टि से.

फिर भी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 31, 2013 at 12:29pm

केवल भाई , अति सुन्दर रचना !! कवि की सोच कहां तक जा सकती है ? वाह !

Comment by विवेक मिश्र on August 31, 2013 at 11:13am
सबका अपना दुःख होता है। मंदिर की सीढ़ियों का भी। सीढ़ियों का दुःख उजागर करती इस भाव-प्रधान कविता के सृजन पर बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service