कब तलक लोगों को लूटते जाओगे ,
वो दिन कब आएगा जब पछताओगे !
जिनकी दुआओं से राजा बन बैठे हो ,
उनकी ही नज़र से एक दिन गिर जाओगे !
मंदिर मज़्जिद के नाम पे खूब लूटा ,
एक दिन वहां भी दरवाज़ा बंद पाओगे !
रूह भी छोड़ देगी इस गंदे जिस्म को ,
फिर इस जिस्म को लेकर कहाँ जाओगे!
सिकंदर भी ना ले जा पाया जहाँ से
खाली हाँथ आये थे खाली हाँथ जाओगे !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक "
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी,स्नेह यूँ ही बनाए रखें //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी,स्नेह यूँ ही बनाए रखें //सादर
आदरणीय शिरोमणि पाठक जी प्रस्तुति पर बधाई
रूह भी छोड़ देगी इस गंदे जिस्म को ,
फिर इस जिस्म को लेकर कहाँ जाओगे!
प्रिय शिरोमणि जी ..आइना और दीपक दिखाती चेतावनी देती अच्छी रचना काश लोगों की आँखें अब भी खुलें
भ्रमर ५
हार्दिक आभार आदरणीय अरुण शर्मा जी,अमूल्य सुझाव के लिए बहुत आभारी हूँ आपका //सादर
हार्दिक आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी //सादर
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी //सादर
बेहद सुन्दर नज्म अनुज किन्तु थोड़ी कसावट की कमी प्रतीत हो रही है. बहरहाल प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.
सुंदर रचना अभिव्यक्ति , बधाई राम भाई जी
वर्तमान को बयां करती एक अच्छी नज़्म् !
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