For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

उमर भर साथ तू शामिल रही परछाइयों में,

सहा जाता नहीं है दर्द-ए-दिल तन्हाइयों में,

जरा सी बात पे रिश्ता दिलों का तोड़ते हैं,

उतर पाते नहीं जो प्यार की गहराइयों में,

भला इन्सान कोई दूर तक दिखता नहीं है,

बुराई घुल रही तेजी से है अच्छाइयों में,

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,

निगाहों को दिखाकर ख्वाब ऊँचें आसमां का,

गिराते लोग हैं धोखे से गहरी खाइयों में....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 1:09pm

आदरणीय सौरभ सर जी हार्दिक आभार आपका भविष्य में ध्यान रखूँगा.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 12:54pm

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,

एक ईमानदार कोशिश हुई है, भाई अरुन अनन्त जी, बहुत बहुत बधाई.

वैसे, आप १२२२ १२२२ १२२२ १२२ को कह देते जिसके लिए अक्सर इस मंच से सभी ग़ज़लकारों से आग्रह किया जाता है तो नये प्रयासकर्ताओं को आपकी ग़ज़ल समझने में आसानी हो जाती.

पुनः बधाई  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2013 at 10:32am

सुन्दर भाव समेटे गजल रचना के लिए बधाई श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी 

Comment by vandana on August 2, 2013 at 6:10am

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,

निगाहों को दिखाकर ख्वाब ऊँचें आसमां का,

गिराते लोग हैं धोखे से गहरी खाइयों में....

समसामयिक और बहुत बढ़िया गजल 

Comment by shubhra sharma on August 1, 2013 at 11:47am

भाई अरुण जी , आपकी गजल आज के समाज के व्यबहारिक पहलु को बखूबी दर्शा रही  है , सुन्दर  पंक्तियों के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 31, 2013 at 9:24pm
दो न्याय अगर तो आधा दो 
गर उसमे भी कोई बाधा हो 
तो दे दो केवल पांच ग्राम 
रक्खो अपनी धरती तमाम 
दुर्योधन वह भी दे न सका 
आशीष हरि का ले न सका!
Comment by Sarita Bhatia on July 31, 2013 at 7:52pm

बहुत खुबसूरत यथार्थ को दर्शाती गजल 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 31, 2013 at 3:49pm

जीवन के यथार्थ को व्यक्त करती शानदार ग़ज़ल ..हार्दिक बधाई अरुण जी 

Comment by विजय मिश्र on July 31, 2013 at 1:31pm
"भला इन्सान कोई दूर तक दिखता नहीं है,
बुराई घुल रही तेजी से है अच्छाइयों में," -- सरजमीनी सच को ढंग से उजागर किया आपने . समुची गजल दाद देने योग्य है . बधाई अरुणजी
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 31, 2013 at 12:55pm

ह्रदयतल से हार्दिक आभार आदरणीया महिमा श्री जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"2122 1212 22 जान फँसती है जब भी आफ़त में बढ़ती हिम्मत है ऐसी हालत में 1 और किसका सहारा होता है…"
25 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"सादर अभिवादन आदरणीय कबीर सर जी नमन मंच"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"जिसको देखो वही अदावत मेंकौन खुश है भला सियासत में।१।*घिस गयी जूतियाँ थमीं साँसेंकेस जिसका गया…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"सादर अभिवादन आदरणीय।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम साहिब को सादर अभिवादन "
6 hours ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"सबका स्वागत है ।"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटीसूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात । क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।मुफलिस…See More
12 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Wednesday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
Wednesday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service