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एक प्रयास
(बहर- 2122 2122 2122)

लक्ष्य क्या जो खोजते हम दौड़ते हैं।
है कहाँ ये आज तक ना जानते हैं।।

ढूंढ साधन,साधने को लक्ष्य सोंचा,
ना सधा ये,सब 'स्व' को ही रौंदते हैं।

जग छलावे में भटकते इस तरह हम,
शांति के हित शांति खोते भासते हैं ।

*समर्पण हो पूर्ण,या लब सीं लिए हों,

क्या शिला भी प्रेम को पा सीलते हैं?

ना पहुंचू पर मुझे हो भान तो वह,
तब बढेंगे, आज तो बस खोजते हैं ।।

*संशोधित
-विन्दु
(मौलिक,अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Vindu Babu on July 20, 2013 at 12:55pm
आदरणीय राज़ नवादवी जी आपका ब्लाग पर बहुत स्वागत है।
गज़ल में हिंदी शब्दों के प्रयोग पर लोगों की अलग-अलग राय है, ठीक है पर आपकी क्या राय है महोदय?
आपकी प्रतिक्रिया मेरा उत्साह है।
शुक्रिया आदरणीय
सादर
Comment by Vindu Babu on July 20, 2013 at 12:52pm
आदरणीय राज़ नवादवी जी आपका ब्लाग पर बहुत स्वागत है।
गज़ल में हिंदी शब्दों के प्रयोग पर लोगों की अलग-अलग राय है, ठीक है पर आपकी क्या राय है महोदय?
आपकी प्रतिक्रिया मेरा उत्साह है।
शुक्रिया आदरणीय
सादर
Comment by Vindu Babu on July 20, 2013 at 12:48pm
आदरणीय जितेन्द्र महोदय आप यहाँ पधारे और रचना को सराहा,मेरा बहुत सम्बल बढ़ा।
सादर आभार।
Comment by Vindu Babu on July 20, 2013 at 12:48pm
आदरणीय जितेन्द्र महोदय आप यहाँ पधारे और रचना को सराहा,मेरा बहुत सम्बल बढ़ा।
सादर आभार।
Comment by Vindu Babu on July 20, 2013 at 12:44pm
आदरणीय बृजेश सर जी सादर नमस्ते!
मैंने एक और अशआर जोड़कर आपके आदेश का पालन कर दिया है।
'सोचा' होता है?? हो सकता है,अभी कुछ कह नहीं सकती इस विन्दु पर।
आपने कहा कि 'भाव अच्छे ही होते हैं',तो आशार्वाद चाहूंगी आदरणीय कि हमेशा अच्छे बने भी रहें! कई बार उत्कृष्टतम् लेखनी भी लोकेष्णा,वित्तेषणा या किसी और भाव के वशीबभूत होकर दिग्भ्रमित हो जाती है,फिर मैंने तो अभी आप जैसे अमलात्माओं के सहयोग से साहित्यिक क्षेत्र में बस कदम रखा ही है। ईश्वर लेखनी को नि:स्वार्थ और निष्ठ बनाए रखे बस!
मार्गदर्शन की सादर आकांक्षी हूं।
आपका बारम्बार आभार आदरणीय!
सादर
सादर
Comment by Vindu Babu on July 19, 2013 at 11:34am
आदरणीय अरुन भाई यह मेरी लापरवाही का परिणाम है। मै 'गज़ल की कक्षा' में तो शामिल हुई पर अध्ययन पूरी निष्ठा से नहीं किया होगा,जो ये जान पाती।
मूल रचना में पाँच अशआर ही थे,पर किसी कारणवश एक हटा दिया,अब एडमिन से निवेदन किया है,संशोधन के लिए।
तब फिर एक बार देख लीजिएगा।
'स्व' के बारे में अग्रजों का मत सादर प्रतीक्षित है।
आपकी उदात्त प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयातल से आभार।
सादर
Comment by Vindu Babu on July 19, 2013 at 11:19am
आदरेया कुन्ती जी आपने रचना को समय दिया,रचना सार्थक हुआ।
आपका बहुत आभार वन्दनीया,आगे स्नेह बनाए रखियेगा।
सादर
Comment by राज़ नवादवी on July 19, 2013 at 9:49am

एक प्रयास है तो बहुत अच्छी बात है. बधाई. वैसे ग़ज़लों में हिन्दी के तत्सम शब्दों के प्रयोग के बारे में लोगों की अलग अलग राय है. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 6:27pm

आदरणीया  वंदना जी, सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:48pm

आदरणीया वंदना जी बहुत ही प्रसन्नता हुई कि आपने इस विधा में प्रयास किया। अन्य विधाओं में आपकी रचनाओं की तरह यह रचना भी बहुत ही सुन्दर है। आपकी रचनाओं के भाव अच्छे ही होते हैं। प्रथम प्रयास होने के बावजूद बहुत ही अच्छी रचना है।

यह माना जाता है कि गज़ल में कम से कम 5 अशआर होने चाहिए। एक और जोड़िए इसमें।

आदरणीय अरुन जी ने ‘स्व’ को लेकर प्रश्न उठाया है। वाजिब है। हिन्दी के हिसाब से मैं इस प्रयोग से सहमत हूं। आगे इस बिन्दु पर सुधीजनों का मार्गदर्शन लाभप्रद होगा।

एक बात आपने ‘सोंचा’ लिखा है। सही शब्द ‘सोचा’ होता है। आपका विचार इस बिन्दु पर जानना चाहूंगा।

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