एकाकीपन साँझ का, मन विचलित करजाय
इस पड़ाव पर उम्र के , बनता कौन सहाय |
सुन्दर हर पल वह घडी,अनुपम सा उपहार
साँस साँस की हर लड़ी,करती जैसे प्यार |
होठ छुअन अहसास ही, मुग्ध मुझे करजाय,
संयम त्यागा स्वपन में, चंचल मन भटकाय |
बहका बहका दिख रहा, खुद का ही व्यवहार
जैसे सब कुछ ख़त्म है, मन मेरा लाचार |
मेरे जीवन में बसे, रूप धरा श्रृंगार,
पोर पोर में बह रही, बनी सतत रसधार |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
हार्दिक आभार स्वीकारे भाई श्री बृजेश नीरज जी
आदरणीय लाडलीवाल जी बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | सादर
आदरणीय दिल छू गया प्रथम दोहा तो ,बहुत बढ़िया दोहावली वाह
आपके कथन से दोहे की सुन्दरता और बढ़ गयी, हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी, एवं श्री सुमित नैथानी जी
सुंदर दोहे
इन सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर,
विजय निकोर
दोहों को सराह सराह कर मनोबल बढाने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री अशोक रक्ताले साहब
रक्ताले की बात भी, देती रहे सकून,
वाणी संयम सांझ में,खिलता रहे प्रसून
आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर प्रणाम, बहुत सुन्दर दोहे, किस दोहे की तारीफ़ करूँ सभी एक से बढकर एक हैं.सादर बधाई स्वीकारें.
वाणी संयम सांझ में, बनता अधिक सहाय |
स्वप्न व्यर्थ के देखकर, मन पाछे पछताय ||
अतीत की ही स्मृतियाँ, एकाकी है भाव
शब्दों में पिरो सकते, रचना के वे पाँव |
दोहे पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी | सादर
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