जब तू था तो सूनापन नही था
इच्छा थी पर अरमान नही था
अश्कों में भिगो लिया दामन मैंने
प्यासी रहूंगी फिर भी सोचा नही था...
तेरी यादों से दिन बनते थे
और जुदाई से काली रातें
तेरे प्यार से ज़िन्दगी बनी थी
और बेवफाई से उखड़ी सांसे...
तेरे गम से मेरा गम जुदा कब था
तू नही समझा बस यही गम था
छीन लिया समय से पहले रब ने
जुदाई का गम क्या पहले कम था...
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपका तहेदिल से शुक्रिया अभिषेक जी..
बहुत सुन्दर जज़्बात
प्रिय प्राची जी अपनी शुभकामनाओ के साथ इसी तरह मेरा होसला बडाते रहिये ..धन्यवाद
आदरणीय सौरभ सर और विजय भाई रचना सराहने क लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद ..आभार
मन के एकाकीपन की पीड़ा को और सान्द्रता देते भावों की अभिव्यक्ति
शुभकामनाएं
भाव विशेष को प्रस्तुत करता प्रयास.. . बधाई.
आदरणीया आरती जी:
//तेरे गम से मेरा गम जुदा कब था
तू नही समझा बस यही गम था
छीन लिया समय से पहले रब ने
जुदाई का गम क्या पहले कम था...//
जुदाई का दर्द एक रहस्य बन कर रह जाता है ...
जीवन के इस गूढ़ रहस्य की भावना को आपने
कितने सुन्दर तरीके से वर्णित किया है !
आपको बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय पाठक जी ओर जितेंदर जी..आभार
वाह आदरणीया आरती जी बहुत ही सुन्दर मनोभाव /// क्या कहने //हार्दिक बधाई आपको
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