For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़र्द दस्तावेज़

     

जिन्हें जन्म दिया

पाला-पोसा बड़ा किया

उन्हीं जिगर के टुकड़ों ने

माँ –बाप को घर से निकाल दिया

 

संगम पर मिली मुझे इक बेबस माँ

वो मेरे साथ होली

इक रोटी मांगी और बोली

“ मैं अनपढ़ हूँ भिखारिन नहीं हूँ ,

 पिछले बरस मेरा बेटा मुझको यहाँ छोड़ गया है ,

 तबसे उसका इंतज़ार करती हूँ ,

 हर आने जाने वाले से रोटी मांगकर ,

 उसका पता पूछती हूँ ”

 

हाय ! वृद्धा माँ से छुटकारा पाने के लिए

बेटा माँ को यहाँ छोड़ गया

ये सोच कलेजा मुहँ को आ गया

हृदयविदारक परन्तु सत्य है

अदृश्य सरस्वती की ही तरह यहाँ

एक लुप्त आंसुओं की नदी बहती है

जो ऐसे ही बेबस माँ-बाप की व्यथा कहती है

कहीं मकान के लालच का होना

कहीं पत्नी से तालमेल ना बिठा पाना

किसी ने बनाया तीर्थ यात्रा का बहाना

किसी का बुढ़ापे को ढोने से इंकार करना

यूँ माँ-बाप को था घर से बाहर निकलना

 

इन सच्चाइयों से तनिक रूबरू होना ......

झाड़ने पर भी इन सूनी आँखों में

आंसू ठिठक जाते हैं

आँखों की पोर पोंछते पोंछते

धोती की कोर भीग जाती हैं

सबके अतीत और वर्तमान में

पैबंद है दुखों की सरिता का

दर्द के ये ज़र्द दस्तावेज़

हर जगह बिखरे मिलते हैं

भोर से टकटकी लगाये इनके नैन

शाम होते होते दम तोड़ देते हैं

जो भी हो... दिल तो इनके फिर भी

जिगर के टुकड़ों को दुआ देते हैं

 

विजयाश्री

२५.०४.२०१३

 

( मौलिक और अप्रकाशित )

 

  

 

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on June 17, 2013 at 12:28pm
क्षमा करेंगी विजयाश्री जी , मैंने भूलवश ' विजयश्री ' पढ़ा और ' मित्र !' का सम्बोधन किया . बहुत ही भाव भरी रचना है .एकबार और साधुवाद .
Comment by विजय मिश्र on June 17, 2013 at 12:22pm
यह आजके प्रगतिशील मानवीयता का एक छोटा रूप है जो ममत्व और पितृत्व की होती नृशंस हत्याओं का मात्र दृष्टान्त है , आज की अधुनातन संस्कृति में तो इसके अतिबीभत्स और महाघृणित हजारों रूप प्रकारांतर से परिलक्षित होते हैं . भौतिक जड़वाद निरंतर चैतन्यता को लील रही है .मूक और विबश मन रोने को बाध्य है ,कर भी क्या सकता है ? मित्र ! एक यथार्थबोधी रचना हेतु साधुवाद .
Comment by vijayashree on June 15, 2013 at 5:48pm

हार्दिक आभार

 

राम शिरोमणि पाठकजी

शालिनी रस्तोगीजी

Comment by shalini rastogi on June 14, 2013 at 10:27pm

सबके अतीत और वर्तमान में

पैबंद है दुखों की सरिता का

दर्द के ये ज़र्द दस्तावेज़

हर जगह बिखरे मिलते हैं

.. मर्मस्पर्शी रचना ... पता नहीं कितने वृद्ध माता पिता अपनी संतान की उपेक्षा से त्रस्त जीवन को शाप की तरह ढो रहे हैं .. बहुत बारीकी से उकेरा है आपने इस दर्द को ..

Comment by ram shiromani pathak on June 14, 2013 at 9:50pm

waah waah adarneeya bahut sundar///hardik badhai

Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 8:42pm

हार्दिक आभार ....

 

बसंत नेमाजी

सुमित नैथानीजी

श्याम नारायण वर्माजी

आबिद अली मंसूरीजी

केवल प्रसादजी

प्रज्ञा श्रीवास्तवजी  

Comment by Pragya Srivastava on June 14, 2013 at 8:32pm

भावपूर्ण रचना -------बधाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2013 at 7:33pm

आ0 विजयाश्री जी,  कपूतों की धज्जियां उड़ाती सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Abid ali mansoori on June 14, 2013 at 4:07pm
दिल को छूती रचना,बधाई आपको!
Comment by Shyam Narain Verma on June 14, 2013 at 3:08pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ...............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
27 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
28 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर…"
56 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service