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Vijayashree's Blog (12)

मेरा मन

मेरा मन

ढूंढे क्या ....

 

सुख आनंद

ये तो है छलावा

मन का भ्रम

 

प्रसन्नता

ये तो आनी जानी

है क्षणिक

 

संतुष्टि

ये है मोहताज़

अभिलाषाओं की

 

धैर्य स्थिरता

है ये स्वयं की सोच

मस्तिष्क उपज

 

शांति

पर किन मूल्यों पर

अंतःकरण या बाह्य:करण 

 

पूर्णता का अहसास

ये तो है एक खामोशी

महसूस करने की

 

फिर भी

ढूंढता…

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Added by vijayashree on September 16, 2013 at 10:30pm — 13 Comments

नई सीख

इस नगर में

मेरे कुछ सपने

हुए साकार

और कुछ

बिखरे किरचियाँ बन

पर

इन सपनों की

फ़ेहरिस्त थी लम्बी

इन्हें पूरा करने

जी जान से थी जुटी

कभी

भावुकता में बही

तो कभी

व्यावहारिकता ओढ़ी

कहीं

करना पड़ा संघर्ष

इसके

विद्रोही मोड़ों पर

लेकिन

इस नगर की

एक बात है ख़ास

मुस्कुराहटों में इसने

दिया मेरा साथ

पर एक बात

है इसकी…

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Added by vijayashree on August 31, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

 

१.

माखन चोर

गिरधर गोपाला

नन्द का लाला

   

२.

राधा-औ-कृष्णा

गोपियों संग रास

बंसी ले हाथ

 

३.

सहज जियो

जीवन है उत्सव

कृष्ण सन्देश

४.

हँस के जियो

जिंदगी प्रेम रस

छक के पियो

 

५.

आनंददायी

कृष्णवृत्ति जो फ़ैले

दुनिया…

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Added by vijayashree on August 28, 2013 at 12:30pm — 9 Comments

औरत

 

    औरत

 

मैंने  

औरत बन जन्म लिया

हाँ मैं हूँ

एक औरत 

और औरत ही

बनी रहना चाहती हूँ

क्यूंकि

मैं इक बेटी हूँ

मैं इक बहन हूँ

मैं इक पत्नी हूँ

सर्वोपरि इक माँ हूँ

मैं इक पूरी कौम हूँ

 

एवं

इनसे जुडे हर रिश्ते

की बिन्दू हूँ मैं

वो सभी घूमते रहते हैं

मेरे चारों ओर

एक वृत्त की तरह

 

और मैं

चाहे…

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Added by vijayashree on July 19, 2013 at 10:32pm — 15 Comments

पीढ़ियों का अंतर

पीढ़ियों का अंतर

पीढियों के अंतर में कसक भरी तड़पन है

इनकी अंतरव्यथा में गहरी चुभन है

जिंदगी की सांस् सिसकियों में सिमटी जा रही है

जिसमें खुशनुमा सी सुबह धुंधली होती जा रही है

दादा दादी, नाना नानी ,पोते पोती ,नाती नातिनें

मिलजुल कर प्यार से रहने के वो रिवाज़औरस्में

क्यूँ आ गई है दीवारें इनमें

कैसे पाटा जायेगा ये अंतर हमसे

ये अंतर घर परिवार की खुशियों को खा रहा है

ऐसा पहले तो नहीं था अब कहाँ से आ रहा…

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Added by vijayashree on July 12, 2013 at 4:00pm — 8 Comments

ज़र्द दस्तावेज़

     

जिन्हें जन्म दिया

पाला-पोसा बड़ा किया

उन्हीं जिगर के टुकड़ों ने

माँ –बाप को घर से निकाल दिया

 

संगम पर मिली मुझे इक बेबस माँ

वो मेरे साथ होली

इक रोटी मांगी और बोली

“ मैं अनपढ़ हूँ भिखारिन नहीं हूँ ,

 पिछले बरस मेरा बेटा मुझको यहाँ छोड़ गया है ,

 तबसे उसका इंतज़ार करती हूँ ,

 हर आने जाने वाले से रोटी मांगकर ,

 उसका पता पूछती हूँ ”

 

हाय ! वृद्धा माँ से छुटकारा पाने के लिए

बेटा माँ…

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Added by vijayashree on June 13, 2013 at 5:00pm — 17 Comments

दृष्टिकोण

   

कल ही की तो बात है

अध्यापन शुरू किया था मैंने

आज आया है एक नया सवेरा

विदाई समारोह होना है मेरा

समय चक्र घूमता ही रहता

हमें इसका आभास न होता

पर सच्चाई यही थी

सहकर्मियों व कर्मस्थली से

होनी मेरी आज विदाई थी

जीवन में आनेवाली शून्यता का

अहसास हो रहा था

इस पीड़ा को व्यक्त करना  

शब्दों में असंभव था

खैर ..विदाई तो होनी थी हो गई

मेरी कर्मस्थली मुझसे जुदा हो गई

अब क्या करूँ ..कैसे करूँ…

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Added by vijayashree on June 13, 2013 at 12:56pm — 11 Comments

माँ तुझे प्रणाम

  माँ तुझे प्रणाम

 

धरती सी सहनशील

हिमालय सी शालीन

जीवन का द्वार

स्नेह की बौछार

बस दुलार ही दुलार

ममता का साकार रूप

प्रभात की पहली धूप

प्रारब्ध के पुण्य का फल

पहली साँस महसूस कराने वाली

अंगुल पकड़ चलाने वाली

पहली शिक्षा देने वाली

सबसे पहले आंसू पोंछने वाली

आत्मविश्वास जगाने वाली

जो सब है मेरे पास

उसी का दिया है अहसास

मेरी ख़ुशी मे मुझसे ज्यादा ख़ुश

मेरे गम में मुझसे…

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Added by vijayashree on April 15, 2013 at 8:07pm — 19 Comments

ज़रूरत

आज ज़रूरत है

अपने अंदर झाँकने की

आपसी द्वेष और क्लेश से

ऊपर उठने की

 

सामने पड़ी वस्तु पर तो

शायद हम पैर न रखतें हैं  

पर दूसरों की भावनाओं को

पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं

  

जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर

इंसानों को बाँटने में लग गए हैं

एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर

प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं

 

पेड पत्थर कागज़ में तो

भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं

 भगवान् द्वारा…

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Added by vijayashree on April 13, 2013 at 11:28pm — 13 Comments

जीवनशैली

  जीवनशैली 

उन्हीं रास्तों पर चलते चलते

ना जाने क्यूँ मन उदास हो गया

सोचने लगी दिखावों के चक्कर में

जीवन कितना एकाकी हो गया

संपन जीवनशैली के बावज़ूद

इसमें सूनापन भर गया है

 

मैंने ड्राईवर से कहा –

क्या आज कुछ नया दिखा सकते हो

जो मॉल या क्लबों जैसी मशीनी ना हो

जहाँ जिंदगी साँस ले सकती हो

जो अपने जहाँ जैसी लगती हो

 

ड्राईवर बोला –

मैडम है एक जगह ऐसी

पर वो नहीं है आपके…

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Added by vijayashree on April 12, 2013 at 9:00am — 20 Comments

माँ की सीख -पापा के संस्कार

माँ की सीख पापा के संस्कार

फँसी रहती हूँ इनमें मैं बारम्बार

माँ ने सिखाया था – पति को भगवान मानना

पापा ने समझाया था – गलत बात किसी की न सुनना

 

माँ ने कहा - कितनी भी आधुनिक हो जाना

पर अपने परिजनों का तुम पूरा ख्याल रखना

पढ़लिख आधुनिक बनकर रूढीवादी न बनना

और पुरानी परम्पराओं का भी तुम ख्याल करना......

 

पापा ने बताया - भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है

पर इसकी कुछ मान्यताएं बहुत खोखली हैं

बेटे-बेटी में भेदभाव बहुत…

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Added by vijayashree on April 5, 2013 at 3:30pm — 17 Comments

माँ का दर्द

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Added by vijayashree on April 4, 2013 at 7:00pm — 15 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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