For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत // भावना तिवारी

व्याकरण में ही 
उलझ कर ,
रह गईं सब भावनाएँ..!!
 
सारा जीवन 
शिल्प प्रेम का 
गढ़ ना पाए !
पग बहुत रक्खे
संभलकर ,
हाथ आईं वेदनाएँ ..!!
 
सब अपने थे 
दोष हार का 
किस पर आए !
समय ने दर्पण 
दिखा कर 
तोड़ डालीं चाहनाएँ ...!!
 
भोर धूप का
अँधियारे से 
युद्ध बढ़ाए !
सूर्य निज वचनों से 
फिर कर  
दे गया है यातनाएँ ..!!
 
   ~.भावना.~
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 669

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelkamal Vaishnaw on June 12, 2013 at 7:37pm

वाह वाह बहुत सुन्दर भावना जी, 'यथा नाम तथा काम' सुन्दर भावनाएं....

Comment by aman kumar on June 10, 2013 at 9:06am

बधाई आदरणीया भावना जी,सुन्दर रचना!

Comment by MAHIMA SHREE on June 8, 2013 at 11:02pm

आदरणीया भावना जी , बहुत ही सुंदर नवगीत .. बधाई आपको  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2013 at 10:40pm
भोर धूप का
अँधियारे से 
युद्ध बढ़ाए !
सूर्य निज वचनों से 
फिर कर  
दे गया है यातनाएँ ..!! वाह बहुत सुन्दर नव गीत सभी पंक्तियाँ दिल तक पंहुचती हैं बहुत बहुत बधाई भावना जी 
 
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 8, 2013 at 9:43pm

सुन्दर है आपकी भावनाएं! बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on June 8, 2013 at 2:32pm

 सुन्दर पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई//////////////

Comment by Shyam Narain Verma on June 8, 2013 at 11:17am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 8, 2013 at 9:13am
आदरणीया..आपने बहुत ही सुंदर तरीके से, पंक्तियों में विवरण किया है "सब अपने थे दोष हार का किस पर आए, समय ने दर्पण दिखाकर तोड़ डाली चाहनाऐं!! " शुभकामनाऐं स्वीकार कीजीऐ...
Comment by शुभांगना सिद्धि on June 8, 2013 at 2:36am

बहुत सुन्दर!

Comment by D P Mathur on June 7, 2013 at 9:49pm

सारा जीवन शिल्प प्रेम का गढ़ ना पाए ,
पग बहुत रखे संभलकर हाथ आई वेदनाएंँ !
सही है लेकिन जैसे जैसे हमारी आकांक्षाएंँ बढ़ती है
तब ही वेदनाएंँ हाथ आती हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service