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गरमी बाकी है |

झमाझम गिरे बारिश  ,  राहत मिला मिली तपन से |
लू का घेरा  बंद हुआ   ,  मलय शीतल पवन से |
आँखों में  पड़े ना धूल , कीचड से पाँव गिला गीला  | 
उमड़ घुमड़ आये बादल , खुश होता  गगन निला नीला |
नभ चर भी भीग रहे  हैं , घोंसलों में छुप रहे | 
थल चर की बात अजब है , छुप छुप कर भीग रहे |
छत से ही पनारा बहे ,  भर नाले  उफन रहे | 
बस  चलते  राही भीगें , बारिश की  धार  सहे |
चारों ओर पानी  भरा , जलचर  के भाग जगे | 
कहीं गिरे छप्पर देखो , मिल कर उठाने लगे |
घर में पानी भर आये , जोर  के की बौछार से | 
सब मिल कर पानी उबहे, घरेलू औंजार से | 
लुका छिपी खेले चन्दा , बादलों की ओट से |
होते कहीं   लोग घायल , डालियों के की चोट से |
सुहाना लगे ये मौसम  , चारों ओर गीत से | 
वर्मा गरमी बाकी है , सुना  अपने मीत से |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:35pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्माजी सादर मानसून पूर्व की बारिश का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने हर पंक्ति मस्त है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 1:21am

suhana lage ye mausam charon or geet se - bahut badhiya kavita ka sanyojan . badhai

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 1, 2013 at 3:54pm

गर्मी अभी बाकी है, सुन वर्मा का गीत 

मौसम गीला आ रहा, देखो मेरे मीत | - आपकी रचना से मन ऐसे भाव आ रहे है, बधाई 

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