For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सपने की झलक

 

स्वर्णिम कल्पनाओं में पले, सलोने-से, परितुष्ट सपने मेरे,

लगता है कई संख्यातीत संतप्त युगों पर्यन्त  मैंने तुमको

आज  जीवन-गति की लय पर यूँ ध्वनित देखा, गाते देखा।

वर्तमान के उजले संगृहीत प्रकाश में पुन:  प्रदीप्त थे तुम,

समय की धारा पर मैंने तुमको लहरों-सा लहलहाते देखा।

जाने कितने अवशेष हैं अब सुख-निद्रा के यह प्रसन्न-पल,

गिने-चुने पलों की झोली भर कर रंजित मन में संप्रयुक्त

ऐसे ही उल्लास में अपने तू सतत हँसता चल, गाता चल।

 

सुखकर यादों की अरुणायी से, आशाओं  के नए दीप जलाले,

दीप की बाती को ऊँचा कर ले,  मिट जाएँ अँधेरे चिरकाल के,

अब योजनीय न बन तू,  मत उलझ  दलीलों के तंतुजाल में,  

कौन कहे, कब आँख खुले, खुलते ही टूट जाए कब यह सपना,

जलती गरमी में सूखते नल से टप-टप करते  पानी  की तरह,

या, हो जाए चूर यह सपना, किसी  चिटके हुए शीशे की तरह,

इसीलिए सहज आनंद की प्रतिमाएँ संजोए आज तू गाता चल,

नव-जीवन का आलिंगन कर ... बस हँसता चल, तू गाता चल।

 

                                   --------

                                                                -- विजय निकोर

                                                                   २५ मई, २०१३

 

मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 6, 2014 at 11:21am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नीरज जी। स्नेह बनाए रखें।

Comment by Neeraj Neer on February 1, 2014 at 2:01pm

वाह, बहुत सुन्दर कविता ..

Comment by vijay nikore on February 1, 2014 at 12:48pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय योगराज भाई।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 2:15pm

सुन्दर कविता !

Comment by vijay nikore on June 8, 2013 at 7:30am

आदरणीय अशोक जी:

 

// सुन्दर रचना, सच है हर्ष के पल जितने भी हैं उन्हें जी भर जी लेना ही उचित है कल किसने देखा.बहुत खूब.//

 

कविता के भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार, अशोक जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on June 8, 2013 at 7:27am

आदरणीया नूतन जी:

 

//नव-जीवन का आलिंगन कर ... बस हँसता चल, तू गाता चल।... बेहद सुन्दर कल्पना //

कविता में निहित भावनाओं की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, नूतन जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on June 8, 2013 at 7:22am

आदरणीया कुंती जी:

 

//जीवन का एक पथ  खत्म होने और दूसरे पथ के शुरूआत होने  का  शुभ संकेत.........यह  अध्यात्म चिंतन से प्रेरित रचना  बहुत लोगों को मार्ग्दर्शन करेगी //

 

कुंती  जी, एक बहुत सुखद सपना आया था, आँख खुलने पर देर तक वह दृश्य सामने तैरता रहा। मेरी आदत है, आँख खुलने पर सदैव सर्वप्रथम विधाता को धन्यवाद  देने की ...उन्हीं खयालों में  अचानक इस कविता का जन्म हुआ था।

 

मेरी रचना की भावनाओं के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

 

 

Comment by vijay nikore on June 8, 2013 at 7:11am

आदरणीय अभिनव जी:

 

//सौन्दर्य परक मधुर भावों की  रचना के बहुत बधाई श्री निकोरे जी //

 

आपने यह कह कर जो मान दिया है, उसके लिए आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on June 8, 2013 at 7:09am

आदरणीय रोहित जी:

 

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2013 at 8:12pm

आदरणीय विजय निकोर साहब सादर प्रणाम, सुन्दर रचना, सच है हर्ष के पल जितने भी हैं उन्हें जी भर जी लेना ही उचित है कल किसने देखा.बहुत खूब.सादर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"वहशी दरिन्दे क्या जानें, क्या होता सिन्दूर .. प्रस्तुत पद के विषम चरण का आपने क्या कर दिया है,…"
54 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"अय हय, हय हय, हय हय... क्या ही सुंदर, भावमय रचना प्रस्तुत की है आपने, आदरणीय अशोक भाईजी. मनहरण…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं अपने प्रस्तुत पोस्ट को लेकर बहुत संयत नहीं हो पा रहा था. कारण, उक्त आयोजन के दौरान हुए कुल…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. 16,15 =31…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"काफ़िराना (लघुकथा) : प्रकृति की गोद में एक गुट के प्रवेश के साथ ही भयावह सन्नाटा पसर गया। हिंदू और…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मनचाही सभी सदस्यों नमन, आदरणीय तिलक कपूर साहब से लेकर भाई अजय गुप्त 'अजेय' सभी के…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपका कहना सही है, पुराने सदस्यों को भी अब सक्रिय हो जाना चाहिए।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"<span;>आदरणीय अजय जी <span;>आपकी अभिव्यक्ति का स्वागत है। यह मंच हमेशा से पारस्परिक…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सभी साथियों को प्रणाम, आदरणीय सौरभ जी ने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है और इस पर चर्चा आवश्यक है।…"
8 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"विषय बहुत ही चुनकर देते हैं आप आदरणीय योगराज सर। पुराने दिन याद आते हैं इस आयोजन के..."
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक रक्ताले सर, प्रस्तुत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।तीसरी और चौथी पंक्तियों को पढ़ते समय…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, अच्छी रचना है सादर बधाई आपको"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service