For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने अपने हिस्से का पानी

हम अपने अपने हिस्से का पानी लिए जिए जा रहें है...

देह में मचलता हुआ, लहू में बहता हुआ

और लोग जो अपनों के साथ हर सुख दुःख मे ढल जाते हैं  

हर उस आकार में जिसमें

उस घडी उनका अपना उन्हें होना देखना चाहता है

वह उनके लिए पानी सा हो जातें है .......

तो है न यह अपनों का संसार|

फिर तुम मैं

कहाँ .... दो किनारों से

अपने अपने हिस्से के पानी के साथ बढते हुए, उन्हें थामे हुए|

कभी न मिलने के लिए|

और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर

देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर

और किनारे जो कही भी अलग नहीं

समान्तर नहीं

वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए

और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब

एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ

बाकी से खुद को भिगो देती हूँ .................  ~nutan~

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 2:16am

सुंदर बिम्बों को लेकर रची गयी रचना … वाह सुंदर सुंदर!

बधाई आदरणीया नूतन जी! 

Comment by Priyanka singh on June 14, 2013 at 9:46pm

 सुंदर.....बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:05pm

kya imagination hai ..wah  meri taraf se hardik badhayee sweekarein 

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 12:13am

और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर

देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर

और किनारे जो कही भी अलग नहीं

समान्तर नहीं

वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए

और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब

एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ

बाकी से खुद को भिगो देती हूँ .................  

वाह !! बहुत ही सुंदर .. बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2013 at 11:41pm

प्रिय सखी नूतन जी आपकी इस रचना पर अभी अभी ध्यान  गया, बहुत ही सुन्दर बिम्बों में गुंथे भाव दिल तक पंहुच गए बहुत सुन्दर वाह वाह बहुत बधाई आपको |

Comment by Yogendra Singh on May 30, 2013 at 8:22pm

बहुत सुंदर तथा मार्मिक अहसास से पिरोयी हुई कविता ॥ 

Comment by vijay nikore on May 30, 2013 at 7:10am

आदरणीया नूतन जी:

 

//

और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर

देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर

और किनारे जो कही भी अलग नहीं

समान्तर नहीं//

आपकी कविताएँ मार्मिक भाव से भरपूर हैं,

अत: अच्छी लगती हैं।

 

हार्दिक बधाई।

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on May 29, 2013 at 3:22pm

बहुत ही सुंदर रचना जिसका हर शब्द अनुभवों के स्याही में डूबी हुई है .नुतन जी , आपकी लेखनी की कोई सानी नहीं...सादर / कुंती .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2013 at 9:07am

अतुकांत शैली में रचित यह रचना अपने उच्च बिम्ब और मजबूत कथ्य से बरबस ध्यान खींचती है, अच्छी और भाव प्रधान अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:45am

बिंम्ब के धागों से स्नेह को बांधती सुन्दर रचना आदरणीया नूतन जी सादर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service