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मैं कैसे सोऊँ ?? (मातृ दिवस पर)

मैं  कैसे सोऊँ ??

नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ 

 व्याकुल जग पंथ निहारता 

 गर्भ नाल में जब हुई पीड़ा  

रक्त माँ- माँ कह पुकारता 

मैं कैसे सोऊँ ?

जब बिस्तर उसका हुआ गीला 

वो करवट करवट जागता 

मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर 

पय उदधि हिलौरे मारता 

मैं कैसे सोऊँ ?

 रोटी का कौर लिए फिरती 

वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता 

मैं  कलम किताब दूँ हाथों में  

वो आगे- आगे भागता 

मैं कैसे सोऊँ ?

जब देर सवेर घर में आता 

शंकित मन फन फुफकारता 

वो प्रश्न का उत्तर ना देकर 

 निष्पंद शून्य में ताकता 

मैं कैसे सोऊँ ?

मैं रात दिन उसकी राह तकूँ 

मन उसकी खबर  सिहारता 

हर वक़्त मुझे है फिकर उसकी 

जब वो सरहद पर जागता 

मैं कैसे सोऊँ ?

जब अंश मेरा हो खतरे  में 

औ वक़्त खड़ा धिक्कारता 

होकर जख्मी ज्यों अरण्य सिंह  

अस्तित्व मेरा हुंकारता 

मैं  कैसे सोऊँ ??

**********************

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 15, 2013 at 9:30pm

आदरणीय अशोक जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थकता प्रदान की हार्दिक आभार आपका । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:38pm

सन्तान किसी भी वय में आ जाए माँ का दिल उसके लिए सदा ही धड़कता रहता है. वाह! आदरणीया राजेश कुमारी जी. बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 14, 2013 at 2:55pm

राम शिरोमणि पाठक जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक आभार आपका |

Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:22pm

आदरणीया सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे ///////


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 13, 2013 at 7:57pm

प्रिय सीमा जी सच कहा माँ कितना भी कंट्रोल करे बच्चों के प्रति उसकी चिंता बनी रहती है बस अपने अनुभव को ही शब्दों में ढाला है आपको पसंद आई रचना धन्य हुई हार्दिक आभार आपका |

Comment by seema agrawal on May 13, 2013 at 7:47pm

संतान की चिंता हर घड़ी होना हर स्थिति में होना ही शायद माँ होना है ..बहुत सुन्दर रचना राजेश जी .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 13, 2013 at 4:45pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:29pm

मैं कैसे सोऊँ ?

मैं रात दिन उसकी राह तकूँ 

मन उसकी खबर  सिहारता 

हर वक़्त मुझे है फिकर उसकी 

जब वो सरहद पर जागता 

मैं कैसे सोऊँ ?

जब अंश मेरा हो खतरे  में 

औ वक़्त खड़ा धिक्कारता 

होकर जख्मी ज्यों अरण्य सिंह  

अस्तित्व मेरा हुंकारता 

मैं  कैसे सोऊँ ??

 एक मां कैसे सो सकती 

कभी नही 

मार्मिक एवं ..

सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 13, 2013 at 10:19am

आदरणीय  लक्ष्मण प्रसाद जी  उत्साहित करती हुई प्रतिक्रिया हेतु  हार्दिक आभार आपको  ये प्रस्तुति पसंद आई |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2013 at 10:13am

 माँ और शिशु के भावों को लेकर मातृ दिवस दिवस पर लिखी गयी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे 

कृपया ध्यान दे...

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