For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस पांच मिनट का पड़ाव  

उस स्टेशन पर 
देख रही हूँ उस पार किस तरह 
वो  उस हथौड़े को 
अपने सर के ऊपर तक ले जाकर 
खटाक से वार कर रहा है
 उस लोहे पर जिसको 
चूड़ियों से भरे दो हाथ 
थाम रहे हैं दोनों और से 
कितना आत्म विशवास है 
उन दोनों को अपने उन हाथों पर 
लोहा इच्छित आकार 
लेता जा रहा है धीरे-धीरे
सोच रही हूँ क्या कोई फर्क है 
इस लोहे और उन दो इंसानों में 
निर्धनता के हथौड़े ने 
इनके जिस्म ,व् मस्तिष्क 
को भी तो ढाल दिया है एक सांचे में  
तभी तो हर वार इतना अचूक 
गति में कंही कोई त्रुटी  नहीं 
व्यवधान नहीं 
एक मशीनी कल पुर्जों की  तरह 
दुनिया से बेखबर अपने उद्यम में 
संलग्न हैं वे दोनों 
मशीनी मानव !!
*************************** 

 

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2013 at 9:35am

आदरणीय प्रदीप कुशवाह जी खेद है रचना पर आपकी प्रतिक्रिया देर से पढ़ी,आपका हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 8, 2013 at 6:41pm
कितना आत्म विशवास है 
उन दोनों को अपने उन हाथों पर 
लोहा इच्छित आकार 
लेता जा रहा है धीरे-धीरे
सोच रही हूँ क्या कोई फर्क है 
इस लोहे और उन दो इंसानों में 
निर्धनता के हथौड़े ने 
इनके जिस्म ,व् मस्तिष्क 
को भी तो ढाल दिया है एक सांचे में  
तभी तो हर वार इतना अचूक 
गति में कंही कोई त्रुटी  नहीं 
व्यवधान नहीं 
एक मशीनी कल पुर्जों की  तरह 
दुनिया से बेखबर अपने उद्यम में 
संलग्न हैं वे दोनों 
मशीनी मानव !!
कहने को शेष रहा ही क्या?
सादर बधाई, 
आदरणीया राजेश कुमारी जी 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 8, 2013 at 9:53am

आप सही कह रहे हैं अशोक जी कई बार ऐसे द्रश्य भी देखने को मिले हैं बचपन से जब भी ऐसे द्रश्य देखती थी तो उनके आत्मविश्वास उनके अचूक वार की मन ही मन प्रशंसा करती और प्रेरणा पाती थी रचना पर आपके अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 8, 2013 at 9:44am

मनोज शुक्ल जी  रचना पर आपकी उत्साह वर्धन करती हुई टिपण्णी से अभिभूत हुई हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 8, 2013 at 9:44am

केवल प्रसाद जी रचना पर आपकी उत्साह वर्धन करती हुई टिपण्णी से अभिभूत हुई हार्दिक आभार आपका 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 8:13am

आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत सुन्दर रचना यह दृश्य अद्भुत तब हो जाता है जब चूड़ियों वाले हाथों में हथौड़ा होता है और तब भी लोहे पर सटीक वार. आपस में इस तरह कार्य बदल लेना किसी और मशीन के लिए संभव भी नहीं. बहुत सुन्दर. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by manoj shukla on May 7, 2013 at 8:56pm
उन दो इंसानों में
निर्धनता के हथौड़े ने
इनके जिस्म ,व् मस्तिष्क
को भी तो ढाल दिया है एक सांचे मे .....
बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने, निर्धनता को बडे ही सहज भाव से समझाया है....बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें .....सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 8:42pm

आ0 राजेश कुमारी जी,   अतिसुन्दर भाव !   पेट की आग..वह चूडि़यों के हाथ, एकाग्रचित--एकनिष्ठ, अमीर की सोच और गरीब की चोट।  आपसी ताल मेल---किस्मत का खेल...! वाह मैम जी वाह।  बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 7, 2013 at 8:36pm

उषा तनेजा जी रचना पर आपका अनुमोदन लेखन को सार्थकता प्रदान कर रहा है हार्दिक आभार आपका । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 7, 2013 at 8:34pm

जी कुंती जी आप सही कह रही हैं अपनी किस्मत से समझौता कर लेते हैं ये लोग बिना किसी शिकवा शिकायत के अपने कर्म में लगे रहते हैं आज भले ही बड़ी बड़ी मशीने ये सब काम मिनटों में कर देती हैं फिर गाँव में शहरों में सड़कों के किनारे ये गाडिया लोहार अपनी चलती फिरती बस्ती बसा लेते हैं और अपने उद्यम में मस्त रहते हैं रचना आपको पसंद आई हार्दिक आभार आपका |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
24 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service