जीने की बात करता हूँ
मै हर इंसान से जीने की बात करता हूँ
औरों के गम पीने की बात करता हूँ
चिंदी ,चिंदी हुई है, जो जीवन की किताब
हर चिंदी को सीने की बात करता हूँ
बचा जो डूबने से, उसे खुदाहाफिज
डूबे भंवर मै, सफीने की बात करता हूँ
दौलत की चमक से मचल रही दुनिया
मै बिन तराशे नगीने की बात करता हूँ
हुए शहीदे-बतन जो मिटाकर अपनी हस्ती
मै उनके खून पसीने की बात करता हूँ
जिन्दगी अपनी कटी बे हिसाब बे तरतीव
औरों से मै करीने की बात करता हूँ
Dr.Ajay Khare Aahat
Comment
आ० डॉ० अजय खरे जी
आपकी यह अभिव्यक्ति गज़ल विधा के काफी करीब है.. ज़रा से प्रयास से इसे सुन्दर गज़ल रूप मिल सकता है.
अभिव्यक्ति के लिए बधाई .सादर.
ji raktale ji jha sahib sadhubaad
बहुत विश्वास और जोश से लबरेज रचना, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. आदरणीय डाक्टर साहब. मैंने पहले भी इस रचना पर प्रतिक्रिया दी थी किन्तु मुझे यहाँ नहीं दिख रही है.
बचा जो डूबने से, उसे खुदाहाफिज
डूबे भंवर मै, सफीने की बात करता हूँ
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति, सादर
sabhi adarniy ko sadhubaad
सुन्दर बहुत खूब
... बधाई
आपकी धनात्मक सोच के नमन डॉ अजय खरे जी, प्रस्तुति के लिए बधाई
आ0 अजय जी, अति सुन्दर। ’जिन्दगी अपनी कटी बे हिसाब बे तरतीव
औरों से मै करीने की बात करता हूँ।।’ बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,
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