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आदनीय डॉ. अजय खरे साहब सादर, बहुत सुन्दरता से आज के परिद्रिश्य को प्रस्तुत किया है. जाना था जापान पहुँच गए चीन.... वाली स्थिति है. जहां दिनों दिन सभ्यता के विकास के साथ ही नारी समाज को जो उच्च स्थान मिलना था वह तो दूर आज जो स्थिति है वह सदैव निराश करती है. सुन्दर रचना. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आदरणीय Dr.Ajay Khare जी, नारी उत्थान के ढोल पीटने के बाद भी नारी की स्थिति में सुधार आने की बजाये अधिक बिगड़ी है. गंभीर समस्या को चिंतनपरक शब्दों में उकेरा है आपने.
सादर
उषा
sabhi aatmiya jano sadhubaad
आदरणीय,
बहुत सुन्दर भावों से भरी रचना हेतु बधाई हो ....................
नारी को अपनी लड़ाई खुद लड़नी है.चाहे कितना बलिदान अपने को क्यों न करना पड़े. रोना गिरगिराना पुरूष समाज का मुँह ताकना
कब तक चलेगा . हमारी जबान तो बहुत चलती है ,अगर हम थोड़ी हिम्मत और दिमाग के इस्तेमाल के साथ ही अपने हाथ पैर भी चलाना सीख जाएँ तो वह दिन दूर नहीं जब नारी सर उठाकर निर्भीकता से समाज में जी सकेगी . लेकिन जब तक अग्यान्ता अशिक्षा नहीं हटेगी ये सिलसिला चलती रहेगी . शिक्षा के अतिरिक्त नारी समाज में जागरूक्ता की बड़ी आवश्यक्ता है...क्योंकि अक्सर देखा गया है औरत दूसरी औरत के पतन का सबसे बड़ी भूमिका निभाती है . डाक्टर खरे जी आपकी रचना बहुत सारे
सवाल खड़े कर रहे हैं...........? सादर कुंती .
आदरणीय अजय खरे जी, सार्थक कथ्य, सुन्दर व्यंग । हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,
बहुत खूब नारी उत्थान ....शुभेच्छाएं अजय जी!
चहुँ और बोल रही नारी की तूती
नारी आज भी पैर की जूती--------सामाजिक जागरुकता का अभाव
नारी देह से होता विज्ञापन ------ नारी स्वयं भी दोषी है
नारी सभ्यता, संस्कार, नारी तमीज तमीज़
नारी तो केबल केवल भोगने की चीज चीज़
नारी पर लिखने और सोंचने पर मज्ज्बूर करने के लिए बधाई
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