For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से - वीनस

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से

महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से

उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से

उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से

ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से

उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला करो हर आदमी से

खबर से जी नहीं भरता हमारा

मजा आता है केवल सनसनी से

अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से

ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से



बह्र-ए-हजज मुसद्दस महज़ूफ़
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on April 20, 2013 at 1:10am

वीनस केसरी जी , नज़ाकत भी . गीले भी शिकवा भी तीर भी तलवार भी ........माशाल्लाह ! बहुत बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 19, 2013 at 3:25pm

अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं 
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से

उजाला बांटने वालों के सदके 
हमारी निभ रही है तीरगी से ------ पूरी ग़ज़ल ही शानदार है बस इन दो शेरो की क्या तारीफ करूँ दिली दाद कबूल करें 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 19, 2013 at 11:14am

क्या बात है जय हो 

इक इक अशआर शानदार है साहब 

इस शानदार और जानदार ग़ज़ल के हर अशआर पे ढेरों दाद हाजिर हैं 

क़ुबूल फरमाइए सादर 

जय हो 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 19, 2013 at 11:08am

आदरणीय, वीनस केसरी जी!    बेहद सुन्दर गजल।.’अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से।’  वाह सर जी!   बहुत बहुत हार्दिक बधाई स्वीकारें...। सादर,

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 19, 2013 at 11:06am

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से 
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से .......................भाई लाजवाब मतला कहा है। 

महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से .......मर जाऊँ  इस सादगी पे...

उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है 
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से ...भाई क्या करोगे जमाने का यही दस्तूर  है बिना प्यास के कोई कहाँ जाता है कुएं के पास 

उजाला बांटने वालों के सदके 
हमारी निभ रही है तीरगी से ..............निभाए जाओ ॥बढ़िया है 

ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से...............वाह वाह वाह....काश ऐसा मैं भी कह पाता 

उतारो भी मसीहाई का चोला 
हँसा बोला करो हर आदमी से........शिकायत पे गौर किया जाएगा.....हाहाहहहह बहुत उम्दा 

खबर से जी नहीं भरता हमारा

मजा आता है केवल सनसनी से ......भाई आजकल के टीवी प्रोग्राम का अ सर है 

अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं 
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से..............ये अंदाजे बयान पसंद आया ...बहुत बढ़िया 

ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से.........भाई ऐसा ज़ुल्म न ढाओ ...अगर आजिज़ आ जाओगे तो इतने मुकम्मल ग़ज़ल कैसे मिलेगी पढ़ने को...

वीनस भाई एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए  दिली दाद कुबूल करें !

Comment by Shyam Narain Verma on April 19, 2013 at 10:29am

bahot khoob.................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service