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कुण्डलियां

सुधार के बाद पुनः प्रस्तुत

हॅसी हुदहुद खंजन से, पिकहु कूक रहि जाय।

बुलबुल मैना खग गुने, सुगा भी टेटियाय।।

सुगा भी टेटियाय, काग कांव कांव करता।

चातक बया तिलेर, टिटेहरी टेर कसता।।

बगुला रखता मौन, हंस गौरैया सरसीं।

मयूर बुलाय कौन, खिलखिल सब चिडि़यां हॅसीं।।

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 9:26pm

आ0 प्रदीप कुमार सिंह जी,  उत्साह बढ़ाने हेतु मैं आपका हार्दिक अभारी हूं।   सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:25pm

सुन्दर प्रयास 

बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 3:50pm

आदरणीय रामशिरोमणि पाठक जी, प्रिय मित्र!  उत्साह वर्धन हेतु  आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 3:47pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, जी सर!  आपकी बात से मैं पूर्णता सहमत हूं। लेकिन मुझे कम्प्यूटर ज्ञान कम होने के कारण ही डरता हूं कि कहीं जो है वह भी गायब न हो जाए, अक्सर ऐसा हो जाता है। फिरभी मैं कोशिश कर रहा हूं। आपके मार्गदर्शन एवं उत्साह वर्धन हेतु  आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 3:40pm

आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी, जी सर!  आपकी बात से मैं पूर्णता सहमत हूं।  आपके मार्गदर्शन हेतु  आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 3:36pm

आ0 संदीप कुमार पटेल जी, जी आपने सही कहा है। आपका बहुत बहुत आभार। सादर,

Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 1:38pm

आदरणीय केवल जी!सुन्दर प्रयास है.बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2013 at 10:47am

केवल प्रसाद जी सुधार के बाद काफी बेहतर हुई है कुण्डलिया प्रयास रत रहें दूसरे  ध्यान रहे की कुंडलिया की शुरुआत ऐसे  अक्षर से हो जिसमे दो दीर्घ आयें क्योंकि अंत उसी अक्षर से होना होता है चूंकि हँसी के ह में चन्द्र बिंदु होने से ह लघु हो गया है इस और ही संदीप जी ने ध्यान आकर्षित किया है आप अपनी ये रचना एडिट कर सकते हैं टिप्पणियाँ वहीँ रहेंगी दुबारा अप्रूव जल्दी ही हो जाएगा ,बहुत-बहुत बधाई आपको प्रकृति की सुन्दरता को कैद किया है आपने शब्दों में |

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 13, 2013 at 10:49pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, अच्छा सुधार हुआ है. सतत प्रयास और भी सुधार कराएगा.बहुत बहुत आभार.बधाइयां

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 13, 2013 at 9:36pm

आदरणीय केवल जी सादर 

रचनाकर्म में प्रयास रत रहने हेतु बधाई आपको 

रचना के बारे में जो अशोक सर ने कहा उससे सहमत हूँ 

तत एक बात 

रोले के अंत में दो दीर्घ अनिवार्यतः होना ही चाहिए 

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