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!!! सत्ता का सार !!!

!!! सत्ता का सार !!!

सत्ता - सुशासन - सरकार
पेट्रोल - डीजल- गैस की मार
दर्द क्यों हम इसका झेलें
जिसके तन में हों पहिये चार
नेताओं की चलती है कार
काला - धन और भ्रस्टाचार
टूट - फूट और मरम्मत का कार्य
बस थोड़ा सा दंगा
और नर -संहार
उनकी कार में खूनी पेट्रोल
व्यभिचारी डीजल का शोर
बलात्कारी से हूटर चीखते
मंहगाई का पूरा काफिला ही संग चलता
ए.सी. ट्रेन - प्लेन का सुख
लेतें हैं चमचा- चापलूस- गद्दार
इनके पूत पालने में ही
फाड़ें चादर
होकर युवा करते यूनिवर्सिटी बेजार
शहर - गाँव पूरा बाजार
थू - थू करता सभ्य परिवार
पुलिस - प्रशासन. कानून सब
हो जाते हैं पंगु और लाचार
और तब पूरा समाज
हो जाता बीमार
बस यही है सत्ता का सार !!!

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 6:43pm

आदरणीय राजेश कुमार झा जी,  आपको रचना अच्छी लगी।  आपका बहुत.बहुत हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 6:40pm

आदरणीय गनेशजी ’बागी’ जी, आपके सुझाव हेतु मैं पूर्ण सहमत हूं।  पूर्व में आ0 बृजेश जी ने भी स्पष्ट किया है। आपके स्नेह रूपी सुझाव का पालन अवश्य करूंगा।  आपका बहुत.बहुत हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 6:33pm

आदरणीय योगी सारस्वत जी,  उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत.बहुत हार्दिक आभार। सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on April 16, 2013 at 5:48pm

अच्‍छी लगी आपकी रचना, शेष आदरणीय बागी जी ने बता ही दिया, सादर

Comment by Yogi Saraswat on April 16, 2013 at 10:57am

नेताओं की चलती है कार
काला - धन और भ्रस्टाचार
टूट - फूट और मरम्मत का कार्य
बस थोड़ा सा दंगा
और नर -संहार
उनकी कार में खूनी पेट्रोल
व्यभिचारी डीजल का शोर
बलात्कारी से हूटर चीखते
मंहगाई का पूरा काफिला ही संग चलता
ए.सी. ट्रेन - प्लेन का सुख
लेतें हैं चमचा- चापलूस- गद्दार

बहुत सार्थक और सुन्दर बात कही है आपने श्री केवल प्रसाद जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 10:09am

केवल प्रसाद जी, कुछ तीखा लिखने जा रहा हूँ ....काव्य में गेयता का अहम् रोल है अन्यथा रचना सपाट बन कर रह जाती है, यह रचना भी वही है, इस रचना में सबकुछ मौजूद है केवल समय देकर फिनिशिंग देना था, आप खुद इसे एक लय के साथ पढ़िए ...क्या आप पढ़ पा रहे है ? 

अब जरा इसे पढ़िये ...

सत्ता, शासन और सरकार
पेट्रोल, डीजल गैस की मार 
दर्द क्यों हम इसका झेलें
जिसके तन में पहिये चार 
नेताओं की चलती है कार 
काला - धन और भ्रष्टाचार  
टूट - फूट, मरम्मत का कार्य 
बस जरा सा नर -संहार

मैंने इसे केवल गुनगुनाकर ठीक किया है, यदि मात्राओं को गिनकर रचना लिखी जाय तो और बढ़िया । सादर ।  

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 8:21am

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी,  सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। आपका प्यार ही आशीष है।  सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 10:41pm

सत्ता सार या भ्रष्टाचार. आदरणीय केवल प्रसाद जी सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 15, 2013 at 7:55pm

आदरणीय, बृजेश कुमार सिंह जी, जी सर! आपकी बात से मैं बिलकुल सहमत हूं। अपनी गलती ढूंढ़ना बहुत मुश्किल की बात होती है। कभी कभी ऐसी स्थितियो में चाह कर भी कुछ नही लिखना चाहता क्यों कि...और वहां कमी महसूस होती है...फिर भी मैं अवश्य ही अमल करूंगा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। सादर, आभार सहित।

Comment by बृजेश नीरज on April 15, 2013 at 7:29pm

केवल भाई बहुत सुन्दर! इस तरह से पोल आप ही खोल सकते हैं। आपको बधाई।
आपको एक सुझाव देना चाहता हूं। रचना को बार बार पढ़ा करें। इससे रचना में सुधार का मौका आपको मिलता है, रचना और निखर कर आती है। जरूरी नहीं कि रचना दस मिनट में तैयार हो जाए। कई कई दिनों के श्रम के बाद रचना अपने रूप में आए, ऐसा भी हो सकता है इसलिए रचनाकर्म धैर्य से ही किया जाना चाहिए।
सादर!

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