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दर्द में आपने कमी कर दी
अपनी यादें जो अजनबी कर दी ।
 
 
आँख भर इश्क का समंदर था
रूठकर कैसी तिश्नगी कर दी ।
 
 
मामला घर में ही सुलझ जाता
बात छोटी सी थी, बड़ी कर दी ।
 
 
फैसला जब दिया तो मक़्तल में
जान आफ़त में थी, बरी कर दी ।
 
 
और क्या देंगे मुफलिसी में तुम्हें
नाम तेरे ये जिंदगी कर दी ।

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Comment by Savitri Rathore on April 9, 2013 at 5:02pm
दर्द में आपने कमी कर दी
अपनी यादें जो अजनबी कर दी ।
 
 
आँख भर इश्क का समंदर था
रूठकर कैसी तिश्नगी कर दी ।
आशीष जी ,बहुत सुन्दर रचना ...........बधाई हो।
Comment by राजेश 'मृदु' on April 9, 2013 at 4:44pm

सुंदर एवं सरस लगी आपकी गज़ल, सादर

Comment by Tilak Raj Kapoor on April 9, 2013 at 12:18am
मामला घर में ही सुलझ जाता
बात छोटी सी थी, बड़ी कर दी ।
वाह भाई वाह। 
Comment by बृजेश नीरज on April 8, 2013 at 12:12pm

वाह बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें!

Comment by विवेक मिश्र on April 6, 2013 at 8:15pm

एकदम नपे-तुले और गहरे मायनों वाले अश'आर हुए हैं. किसी भी एक शे'र को हासिल-ए-ग़ज़ल कहना मुश्किल है. बेहतरीन-बेहतरीन और बेहतरीन. इसके अलावा कुछ नहीं कह सकते कि अश'आर की संख्या और ज्यादा होती, तो और आनंद आता. दाद कबूल करें आशीष जी. :)

Comment by Shyam Narain Verma on April 6, 2013 at 5:20pm

बहुत उम्दा भाई ,

बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें...

Comment by नादिर ख़ान on April 6, 2013 at 4:57pm
मामला घर में ही सुलझ जाता
बात छोटी सी थी, बड़ी कर दी ।......
और क्या देंगे मुफलिसी में तुम्हें
नाम तेरे ये जिंदगी कर दी ।
आशीष जी इस उम्दा गज़लके लिए बहुत बहुत बधाई ।
Comment by ram shiromani pathak on April 6, 2013 at 2:43pm
आँख भर इश्क का समंदर था
रूठकर कैसी तिश्नगी कर दी ।
मामला घर में ही सुलझ जाता
बात छोटी सी थी, बड़ी कर दी!!!

बहुत उम्दा भाई आशीष जी बहोत सारी दाद काबुल करे !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 6, 2013 at 1:24pm
और क्या देंगे मुफलिसी में तुम्हें
नाम तेरे ये जिंदगी कर दी ।-------बहुत उम्दा भाई आशीष नाथानी 'सलिल' जी दाद काबुल करे 
Comment by Parveen Malik on April 6, 2013 at 12:52pm

बहुत खूब .. बधाई !

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