फूलों को तू सूंघ मत, आज अप्रैल फूल|
हो सकता है फूल में, हो मिर्ची की धूल||
तू देख वतन पश्चिमी, कितने होते धूर्त|
मूर्ख दिवस देकर हमें, कहते हमको मूर्ख||
नेता को देखो सड़क, गलत कर रहा पार|
अंधे ने बाहें पकड़, बचा लिया सरकार||
हाथी बोला गर्व से, मैं तगड़ा ऐ ढीठ|
चूजा बोला मैं बड़ा, बैठा तेरी पीठ||
नब्बे प्रतिशत मूर्ख हम, दस प्रतिशत बेकार|
फिर मूर्खों के देश में, क्यों करते व्यापार||
कौवों में प्रतियोगिता, रखते अपनी बात|
उल्लू बैठा सो रहा, जगता सारी रात||
बूढ़े तोतों से भरी, देख पेड़ की डाल
युवा देखें टुकर-टुकर, मन में उठे सवाल
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Comment
हाथी बोला गर्व से, मैं तगड़ा ऐ ढीठ|
चूजा बोला मैं बड़ा, बैठा तेरी पीठ||
हाथी तो समझा पर ये चूजा कौन है
आदरणीय अशोक रक्ताले जी आपको ये दोहावली पसंद आई इन दोहों में छुपे व्यंग्य से आप प्रभावित हुए लिखना सार्थक हुआ ह्रदय से आभारी हूँ
जवाहर लाल सिंह जी आपको ये रचना पसंद आई इन दोहों में छुपे व्यंग्य से आप प्रभावित हुए लिखना सार्थक हुआ ह्रदय से आभारी हूँ
बूढ़े तोतों से भरी, देख पेड़ की डाल
युवा देखें टुकर-टुकर, मन में उठे सवाल........वाह! बहुत उम्दा.
बहुत सुन्दर दोहे आदरेया राजेश कुमारी जी सादर बधाई स्वीकारें.
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन!
आपकी कविता हास्य से परिपूर्ण है पर इसके अंदर छुपे व्यंग्य हम सबको सोंचने पर मजबूर करते हैं . बहुत बहुत बधाई!
केवल प्रसाद जी हार्दिक आभार आपको दोहावली पसंद आई और हास्य रसास्वादन किया
राम शिरोमणि पाठक जी हार्दिक आभार आपको दोहावली पसंद आई |
आदरणीया, राजेश कुमारी जी, हंसाते, गुद-गुदाते सुन्दर दोहे। बहुत बहुत बधाई।
आदरणीया बहुत सुन्दर ढंग से बात कही आपने!आपको हार्दिक बधाई!
प्रिय प्राची जी हार्दिक आभार आपको दोहे रुचिकर लगे मूर्खता दिवस की बधाई स्वीकार की
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