जिस ख्वाब की बदौलत ताउम्र सो न पाये
ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये
बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके
पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये
पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते
कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये
चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना
सरसब्ज़ हसरतों की कश्ती डुबो न पाये
कुदरत को जालिमो ने इस तरह से सताया
ना हँस सके परिन्दे अब्रपार रो न पाये
मायूस तू न होना किस्मत पे रख भरोसा
इक रोज़ पा सकेगा इस बार जो न पाये
तू मुझको जिंदगी दे या फिर मुझे कज़ा दे
परवर दिगार मेरा ईमान खो न पाये
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'राज'
Comment
ब्रजेश कुमार जी आपकी सराहना से लेखन को नव ऊर्जा प्राप्त हुई तहे दिल से आभारी हूँ |
तू मुझको जिंदगी दे या फिर मुझे कज़ा दे
परवर दिगार मेरा ईमान खो न पाये
बहुत सुन्दर लिखा है आपने। आपका लेखन वैसे भी हम जैसे लिखने का प्रयास करने वालों के मार्गदर्शक रहा है। आखिर में जो संदेश आपने दिया है वह बेमिसाल है। मेरी बधाई स्वीकारें इस सुून्दर रचना पर।
आदरणीय विजय निकोर जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी लेखनी का मान बढ़ा दिली शुक्रिया
आदरणीया ’राज’ जी:
गज़ल अच्छी लगी... भाव सुन्दर हैं।
तू मुझको ज़िन्दगी दे या फिर मुझे कज़ा दे
परवर दिगार इमान मेरा खो न पाए ................ वाह, वाह!
सादर,
विजय निकोर
केवल प्रसाद जी आपको भी पर्वों की शुभ कामनाए आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया |
आदरणीया, राजेश कुमारी जी, सबसे पहले आपको सपरिवार प्रेम एवं सद्भावना का प्रतीक होली के पावन त्योहार पर हार्दिक शुभकामनाएं। बहुत ही उम्दा गजल। हर पंकित में इक प्रश्न है जो सांसारिक सत्य है। बधाई स्वीकार करें, सादर।
राजीव कुमार झा जी आपको गज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया|
राम शिरोमणि पाठक जी दिली आभार आपका|
बहुत उम्दा गजल, आदरणीया राजेश कुमारी जी .
पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते
कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये
बहुत सुन्दर .
बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके
पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये
आदरणीया , उम्दा ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई के साथ साथ ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.
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