For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौलिक व अप्रकाशित 

भाग 1 से आगे -

इसी तरह दिन गुजरते गए और फसल पकने का समय हो आया. इस साल अच्छी फसल हुई थी. महाजन को उसका हिस्सा देने के बाद भी भुवन के घर में काफी अनाज बच गए थे. खाने भर अनाज घर में रखकर बाकी अनाज उसने ब्यापारी को बिक्री कर दिए. जब पैसे हाथ में आते हैं तो आवश्यकता भी महसूस होती है. अभीतक वे दोनों भाई ठंढे के दिन में भी चादर और गुदरी(लेवा - पुराने कपड़ो को तह लगा सी देने से मोटा 'लेवा' बन जाता है)  में गुजारा कर लेते थे. पर इस साल उन दोनों ने दो रजाईयां बनवाई. कुछ नए कपड़े भी बनवाए!  ..एक और जरूरत की चीज महसूस हो रही थी, वह थी, खेतों की सिंचाई के लिए 'पम्प सेट' की. अभी तक पारंपरिक तरीके से जैसे रहट, लाठा, मोट (चमरे का बड़ा सा थैला नुमा साधन जिससे एक बार में काफी पानी कुंए से निकाला जा सकता है), आदि से ही सिंचाई करता था. यह सब साधन सार्वजनिक होने के कारण उन लोगों को अगर दिन में मौका नहीं मिलता तो रात में ही अपने खेतों की सिंचाई करते! अब चूंकि कुछ पैसे हाथ में हैं, कुछ महाजन से मांगकर, एक तीन हॉर्स पॉवर का पम्पसेट जो किरासन तेल या डीजल से चलता था खरीद लिया. दूसरे साल उसने ज्यादा जमीन में खेती की और ज्यादा पैदावार भी हुई.

गाँव के अन्य किसान जिनकी अपनी जमीन थी, वे भी उतना पैदावार नहीं कर पाते थे, जितना इन दो भाइयों की मिहनत पर भगवान् की कृपा होती!

इसी तरह इन दोनों भाइयों की मिहनत रंग लाती गयी और एक समय ऐसा आया जब ये लोग दूसरों के खेती की ही पैदावार से अपने लिए कुछ जमीन भी खरीदना शुरू कर दिया.

******

कुछ महीनों बाद चंदर को एक लड़का हुआ और भुवन को मात्र एक ही लडकी थी! गाँव के लोग ताना कसते – “क्या हो भुवन! इतना काम किसके लिए कर रहे हो? बेटा तो है नहीं, कौन वरिश बनेगा तुम्हारी संपत्ति का?”

“मेरा बेटा नहीं है तो का हुआ चन्दर का तो है, वही मेरा बेटा है, वही मेरे मुख में आग देगा.” भुवन का यही जवाब होता. लोग आश्चर्यचकित होते इन दोनों भाइयों के परस्पर प्रेम पर!

गौरी गोरी तो थी ही सुन्दर भी थी. खेतों में काम करने के बावजूद भी उसके रंग में और लालिमा बढ़ जाती थी, जब वह अपने फसल को लहलहाती देखती! कोशिला भी उसे दीदी दीदी कहते नहीं थकती!

चंदर का लड़का प्रदीप स्कूल जाने लगा था और वे दोनों भाई उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे! खैर ईश्वर की महिमा कुछ ऐसी हुई कि प्रदीप इंजिनियर बनने की स्थिति में पहुँच गया था. इधर गाँव के सेठ (सबसे बड़े खेतिहर) जी, जिनकी तीन बेटियां ही थी, बृद्धावस्था की तरफ बढ़ रहे थे. उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति(खेत) अपने तीनो बेटियों को बराबर बराबर हिस्से में बाँट दिया. तीनो दामाद सर्विस करते थे और उनकी अपनी भी खेती-बारी थी. सो यहाँ के जमीन को उनलोगों ने धीरे धीरे बेचना शुरू कर दिया और खरीददार यही दोनों भाई बन गए. इस तरह कुछ सालों बाद भुवन और चंदर गाँव के सबसे बड़े आदमी बन गए. इनका मिट्टी का मकान पक्के मकान में बदल गया. गाँव का सबसे बड़ा खलिहान और फसल का ढेर इन्ही लोगो का होता. इनके पास कृषि के सभी आधुनिक मशीन थे और अब वे किसी से कम नहीं थे. फिर भी उन्होंने कभी भी मिहनत से जी न चुराया न ही किसी के साथ बेईमानी की!

पर अपने हक़ के लिए या किसी के वाजिब हक़ के लिए ये कभी भी पीछे हटने वाले न थे!

एक रात एक चोर उनके घर में घुसा और कीमती सामान चुराकर भागने लगा. तभी इन दोनों की नींद खुल गयी ... वे चोरों का पीछा करने लगे.... चोरों ने गोली भी चलायी.... पर ये कहाँ डरने वाले थे ....अंत में चोरों ने सारा सामान फेंक नदी में कूद अपनी जान बचाई! गाँव के बाकी लोग भी पीछे पीछे थे और इनके बहादुरी की प्रशंशा करने लगे. इनका मिहनत की कमाई चोर भी न ले जा सके!

**********

एक दिन जाड़े के समय लोग अलाव के पास बैठे अपने शरीर को गर्म कर रहे थे और आपस में कुछ बातें भी कर रहे थे.

हरखू - "हमलोग को इतना ठंढा लग रहा है, पर भुवनवा को देखे हैं?... एगो हाफ कुरता पहने खेतों को पानी पटा रहा है!"

महेन्दर- "गजब जीवट का आदमी है, एगो बेटी है, उसी के लिए इतना मर रहा है!"

धनपत- "अरे वो तो अपने भतीजे को ही अपना बेटा माने हुए है. कहता है-यही मेरा बेटा है!"

हरखू- "कौन जानता है ऊ बेटी भी उसका है कि नहीं, सब दिन तो हीरा चचा के साथ दलाने पर सोता है!"

बाकी लोगों के हंसने की बारी थी!

"और देखे हैं न, हीरा चचा रजाई ओढ़ते हैं और ई वहीं पर एगो चादर (दोहर) ओढ़े हुए पुआल में घुसा रहता है!

"हाँ भाई, लगता है, ठंढा भी उससे डरता है!"

"पैसा का गर्मी है न! ठंढा कैसे लगेगा!"

"बुरबक, जब पैसा नहीं था, तब भी तो वह वैसे ही सोता था."

इन बातों की चर्चा हो ही रही थी कि चंदर भी अलाव के पास आ धमका और अपने भींगे हाथ को सुखाने की कोशिश करने लगा!

अंतिम एक दो वाक्य से उसे मतलब  निकालने में देर न लगी ..

"का बोल रहा रे घोंचू, एही आग में झोंक देंगे अगर आगे एक बात भी बोला तो...

"जब पैसा नहीं था, तो मांगने गए थे तुम्हारे दरवाजे पर!...

"हम जो तकलीफ झेले हैं, तुम्ही को पता है?...

सभी लोग अपनी अपनी नजरें बचाने लगे

हरखू ने ही बात को सम्हालने की कोशिश की- "नहीं भाई, चंदर! हम तो तुम्हारे भाई की तारीफ ही कर रहे थे...इतना ठंढा में भी बेचारा पानी पटा रहा है ...लगता है तुम भी वहीं से आ रहे हो!"

चंदर- "हाँ भैया के कामों में हाथ बंटा रहा था  ...अब वे भी आएंगे ही थोड़ा और लकड़ी डालिए. वे भी थोड़ा गरम हो लेंगे ... ठंढा तो हइये है, लेकिन क्या करेंगे. अभी पटा लेते हैं तो कल शुबह मसूरी काटने भी तो जाना है! मसूर भी पक के तैयार है नहीं काटेंगे तो खेते में रह जाएगा!"

थोड़ी ही देर में भुवन भी वहां आ गया और अपना हाथ सेंकते हुए कहने लगा - "चंदर, मुसहरी(मजदूरों का टोला) में गया था? चार पांच आदमी होने से जल्दी जल्दी मसुरी काट कर ले आयेंगे."

"हाँ भैया, बोल दिए हैं"

अलाव अब बुझने पर थी और सभी लोग धीरे धीरे अपने घरों की तरफ खिसक लिए!

क्रमश: भाग 3 

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 4:27am

आदरणीय श्री योगी जी, सादर अभिवादन!

अगर आप गाँव के वातावरण से परिचित है तो अवश्य ही आपको अपने आस पड़ोस की ही घटना लगेगी! आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया का आभार!

Comment by Yogi Saraswat on April 1, 2013 at 10:55am

धीरे धीरे आप हमारी साँसों को और फुलाए जा रहे हैं श्री जवाहर सिंह जी ! क्या भुवन और चन्दर का यह प्यार इसी प्रकार स्थाई बना रहेगा ? उनकी संतानें आगे चलकर क्या एकता के सूत्र में अपने बड़ों की भाँति ही बँधी रह पाएंगी ? जो लोग देवर-भौजाई के पवित्र रिश्तों में जहर घोलने की ताक में हैं, क्या उनकी दाल गलने में कामयाब होगी ? ऐसे ही बहुत सारे सवालों के जवाब के लिये ‘दो भाई’ की अगली कड़ी की प्रतीक्षा में रहेंगे ! सीरियल सा लग रहा है ! मजा आ रहा है ! लेकिन ये जो भी घटित हो रहा है , ऐसा लग रहा है जैसे यहीं कहीं पड़ोस में हो रहा हो

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 9, 2013 at 9:57pm

आदरणीय कुशवाहा जी, अशोक जी एवं राम शिरोमणि  जी आपलोगों का सादर आभार, कहानी को पसंद करने के लिए! जल्दी ही अगली किश्त पेश की जायेगी!

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2013 at 7:48pm

aadarniy singh saahab ji 

saadar 

उत्सुकता बढ़ रही है. भाग ३ हेतु.

बधाई.

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 11:17pm

बढ़िया कहानी है आगे का भाग पढने की उत्सुकता मन में बनी हुई है.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 8, 2013 at 5:06pm

aadarniy singh saahab ji 

saadar 

उत्सुकता बढ़ रही है. भाग ३ हेतु.

बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service