For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"छंद त्रिभंगी "(एक प्रयास)

"छंद त्रिभंगी "

उठ नींद से गहरी , अर्जुन प्रहरी, नयना अपने, खोल ज़रा
पद साथ बढ़ा के , चाप चढ़ा के , इन्कलाब तो, बोल ज़रा
या छोड़ दिखावा, ये पहनावा, भगवा धारण, तुम कर लो
बन संत तजो सब, मौन रहो अब, मन का मारण,तुम कर लो

,,,,,,,दीप ............

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:13pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
सच कहा आपने गुरुवर
मैंने आपको पहचानने मैं कोई गलती नहीं की जैसे आपने मुझे
"कथ्य के विषय में तो यह प्रतीत हो रहा है कि आप शब्द के अनुसार भाव संतुलित कर रहे हैं."
आपका यही दृष्टिकोण साहित्य के प्रति आपकी विस्तृत आसमान सी सोच के बारे बताता है 
हम बदलाव् की बात करते हैं लेकिन उसमे भी सीमाओं में रह कर
ताकि साहित्यिक संस्कृति बरकरार रहे
ये स्नेह और मार्गदर्शन इसी तरह बनाये रखिये गुरुदेव
आपका बहुत बहुत आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:08pm

आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम
इस प्रयास को आपकी सराहना मिली लेखन सफल हो गया
शिल्प के विषय में आदरणीय गुरुदेव ने जो कहा है उसे आत्मसात करता हूँ
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये अनुज पर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 6, 2013 at 4:24pm

प्रिय संदीप जी ,

त्रिभंगी छंद पर आपका यह छंद प्रयास बढ़िया लगा. प्रथम दो पंक्तियों का जोश सराहनीय है, इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

लेकिन, अंतिम पंक्ति में कथ्य के पीछे की वैचारिकता  स्पष्ट नहीं लगती...जिसे पढ़ना चौकाने जैसा है. 

सद कामनाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2013 at 8:54am

प्रिय संदीप बहुत नेक प्रयास है छंद त्रिभंगी पर ये छंद बहुत ही मनमोहक है लेखकों को खींचता है अपनी तरफ़ इसी धुन में मैंने भी एक प्रयास किया था ,आपके छंद में दोनों बातें पूर्णतः स्पष्ट है कि जीवन का कौन सा रुप तुम स्वीकार करना चाहते  हो आशावादी होकर या निराशा वादी होकर ,बहुत बढ़िया प्रयास है इस हेतु तुमको हार्दिक बधाई| 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 7:18am

आपका छंद प्रयास बढिया हआ है. कथ्य तो अपनी जगह, शिल्प की दृष्टि से आपकी रचना सधी हुई है. इस हेतु आपको हृदय से बधाई.

कथ्य के विषय में तो यह प्रतीत हो रहा है कि आप शब्द के अनुसार भाव संतुलित कर रहे हैं. चूँकि, प्रस्तुत छंद रचना के लिहाज से रचनाकार का यह आरंभिक काल है अतः यह बात समझ में भी आती है. लेकिन यह मंच ही रचनाकारों के लिए अपनी प्रकृति के अनुसार ऐसा वातावरण उपलब्ध कराता है जहाँ रचना-प्रयास ’सीखने’ के क्रम में अपनी सार्थकता बनाये रखे. शुभेच्छाएँ.

गणेश भाई द्वारा उठाया गया प्रश्न छंद-तथ्य के लिहाज से न हो कर उच्चारण के अनुसार है. इंकलाब शब्द में कलाब को हम अलग से नहीं पढ़ सकते. ऐसा करना भी नहीं चाहिये. हिन्दी भाषा में रचनाओं में प्रयुक्त शब्द डिस्टिंक्ट हुआ करते हैं. लेकिन साथ ही यह भी सही है कि छंदों में शब्दों का प्रवाह में आना आवश्यक है. 

भाई संदीपजी, इस त्रिभंगी छंद को हम सभी सदस्यों ने अपने मंच पर विविध रूपों में और कई-कई आयामों से देखा है. सभी आयामों की खूब चर्चा भी हुई है, आवश्यक तो कई बार अनावश्यक. हालाँकि, इससे एक अच्छी बात यह हुई है कि प्रस्तुत छंद के नियम-संबंधी कई-कई विन्दु पाठकों के सामने आ गये. एक बात अवश्य ग़ौर करने लायक है कि शास्त्रीय छंद ही नहीं कोई विधा या नियमावलि हो,  व्यवहार करने वालों द्वारा निरंतर उपयोग होना ही उसका जीवन है. शास्त्रीय छंदों के नियम स्थायी हैं. लेकिन यह भी सत्य है कि उन्हीं नियमों के कई-कई क्षेपक भी हुआ करते हैं, जो कई बार अलिखित होते हैं तथा परंपराओं से व्यवहृत होते रहने के कारण मान्य व स्वीकार्य समझे जाते हैं. यह मूल नियमों की अवहेलना न हो कर उनके विविध रूप का प्रकाश में आना माना जाता है. इस रोचक विषय पर आचार्य सलिलजी से हुई अपनी बातचीत से यह बात सामने आयी है जिसका सार यही है कि छंद-रचनाएँ उन्हीं सीमाओं में हों जिनमें वे मान्य होती हैं. यह अवश्य है कि उनका रूप शुद्ध रखना रचनाकारों का ही काम है. सही भी है. लेकिन मान्यताओं और नये प्रयोगों को खारिज़ कर देने की निरंकुशता छंद प्रयासों को ही मार देगी. अतः, आज के व्यवहृत शब्दों और उनकी प्रकृति तथा सीमाओं के लिहाज से उनका प्रयोग होना रचनाओं और रचनाकारों दोनों के लिए समीचीन है.

सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 5, 2013 at 10:51pm

//पद साथ बढ़ा के , चाप चढ़ा के , इन्कलाब तो, बोल ज़रा//

                                                  121

संदीप भाई, बहुत ही सुन्दर छंद रचा है , शिल्प के बारे मे तो गुणी जन बतायेंगे, मैं अभी यह छंद नहीं सीख सका हूँ , मैं गाते हुए यह रचना पढ़ी, अंडरलाइन शब्द पर प्रवाह बाधित हो रहा है , मुझे लगा शायद यह जगण (१२१) के कारण है, जानकार जन कृपया प्रकाश डालेंगे | बधाई संदीप भाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service