रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!
उठती भाप,
बढ़ता ताप,
खौलता धमनियों में खून
मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को
चिमटा,बेलन घर के अपने थे
आग पर चढ़ा दिया
जला दिया
इच्छाओं को ..
मैं चुपके से देखती हूँ
इन रोटियों में अक्स अपना !!
आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
~भावना
Comment
भावनाजी, बहुत खूब !
जिस सहजता और सरलता से आपने भावजन्य शब्दों को होने दिया है, वह आपकी संवेदनशीलता और गंभीर रचनाकर्म का द्योतक है.
मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को
झुंझलाहट की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति ! वाह-वाह !!
आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं
देह विशेष की दशा और उसकी धारता से उपजी विवशता को क्या ही सुन्दर शब्द मिले हैं ! एक पाठक के तौर पर आपके संप्रेषण को मैं शिद्दत से महसूस कर पा रहा हूँ. यह आपके रचनाकर्म की सफलता है.
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
अपने होते चले जाने और अपने साथ होते चले जाने को आपका रचनाकार छटपटाता हुआ स्वीकार करता दीखता अवश्य है लेकिन उसके मौन में प्रतिकार है. भावनाजी, यह इस मौन-प्रतिकार को देह और शब्द की मुखरता मिले.
इसी तरह की भावनाओं के लगातार घनीभूत होते चले जाने पर पिछले दिनों हमने एक शेर होने दिया है. विश्वास है, उसे आपका अनुमोदन मिलेगा -
जो ज़िस्म जी रही हूँ, लगता मुझे सदा यों --
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है ॥
आपकी इस रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ.
इस स्वीकारोक्ति हेतु आभार आदरणीया भावना जी ....स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना हेतु
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
आपका सवाल सही है आदरणीय राजेश जी इसमें कवित्री ने वही कहा है जो चल रहा है आजके इस दौर में सब जानते हैं ये ग़लत है किन्तु मौन हैं क्यूंकि वो भी इसी का हिस्सा हैं ..........क्या मैं सही हूँ आदरणीया
घर बाहर सभी जगह महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर विवशता को बयां करती मार्मिक रचना को भावों से सजाने के लिए बधाई स्वीकारें. आदरेया भावना तिवारी जी सादर.
भूख में,
मौन मन विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
....उन औरतों की भूख जो आज भी भूख मिटाने के लिए रोटियों की तरह हर रोज़ सिंकती हैं ...मौन रह कर..कोई प्रतिवाद नहीं
,कोई उफ़ नहीं,उनका प्रतिउत्तर केवल मौन...!!
भावों का एक समुच्चय, बिम्बों के झरोखे से कवियित्री जिस मार्मिकता से छू कर निकलती है, वह कही नहीं जा सकती , केवल उन बातों को महसूस किया जा सकता है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया डॉ भावना तिवारी जी |
बहुत ही अच्छी रचना है, भाव इतनी गहराई से छूते हैं कि मन अकबक करने लगता है सिर्फ एक चीज जानना चाहूंगा कि भूख में मौन मन में भूख क्या किसी बिंब का द्योतक है
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