For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर रोज़ एक शब्द

सोचती हूँ

उसे बुन लेती हूँ 

बुन कर सोचती हूँ 

फिर उधेड़ देती हूँ ..

उधड़े  हुए शब्द

ह्रदय में

एक लकीर सी बनते

तीखी धार की तरह

निकल जाते हैं ....

सोचती हूँ यह शब्दों

का बुनना फिर

उधेड़ देना

यह उधेड़-बुन न जाने

कब तक चलेगी ..

शायद यह जिन्दगी ही

एक तरह से उधेड़ - बुन ही है

Views: 584

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 17, 2013 at 10:19pm

सरल शब्दों में बुनी भावनाएँ मन को छू गईं।

आपकी अन्य कविताएँ पढ़ने को मन है।

बधाई।

विजय निकोर

 

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:28pm

जिंदगी की उधेड़-बुन पर शब्दों का ये बुनना चलता ही रहता है. इस पर कितनी सुंदर रचना. 

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:24pm

विशाल जी आपका हार्दिक धन्यवाद ....

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:24pm

अरुण शर्मा जी आपका हार्दिक धन्यवाद .......

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:23pm

सौरभ पांडे जी  आपका हार्दिक धन्यवाद , आपकी सराहना से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला है .....

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:35am

आदरणीया सर्वप्रथम ओ. बी. ओ. पर आपको देख कर ख़ुशी मिली, पहली प्रस्तुति ही बेहद सुन्दर है हार्दिक बधाई.

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on January 16, 2013 at 9:54pm

आपकी इस रचना में एक बहाव - शब्दों का सुन्दर ढंग से बुना जाना दिखा......सच में.....छंदमुक्त रचनाओं को अगर इसतरह से बुना जाये तो पढना बडा सुखकर लगता है.......उपासना जी हृदय से बधाई एवं ओबीओ परिवार में आपका स्वागत है !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2013 at 7:29pm

शब्द कर्म की अभिव्यक्ति होते हैं. सोच को शब्द देना और उस शब्द से सोच का उमगना, यही तो वृत्ति के अनुसार कर्म और पुनः कर्म से वृत्ति के होने का चिरंतन प्रक्रिया है.

’उधेड़-बुन’ को अच्छी अभिव्यक्ति मिली है, उपासबा जी. आपकी कोई पहली रचना देख रहा हूँ. आपका संप्रेषण सधा हुआ है. आपका इस मंच पर सादर स्वागत है.

Comment by upasna siag on January 16, 2013 at 6:28pm

बहुत -बहुत धन्यवाद राजेश जी , प्रदीप कुमार जी , राम शिरोमणि जी सराहना के लिए .....

Comment by ram shiromani pathak on January 16, 2013 at 5:29pm

उत्तम अति उत्तम 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service