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हर रोज़ एक शब्द

सोचती हूँ

उसे बुन लेती हूँ 

बुन कर सोचती हूँ 

फिर उधेड़ देती हूँ ..

उधड़े  हुए शब्द

ह्रदय में

एक लकीर सी बनते

तीखी धार की तरह

निकल जाते हैं ....

सोचती हूँ यह शब्दों

का बुनना फिर

उधेड़ देना

यह उधेड़-बुन न जाने

कब तक चलेगी ..

शायद यह जिन्दगी ही

एक तरह से उधेड़ - बुन ही है

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Comment

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Comment by vijay nikore on January 17, 2013 at 10:19pm

सरल शब्दों में बुनी भावनाएँ मन को छू गईं।

आपकी अन्य कविताएँ पढ़ने को मन है।

बधाई।

विजय निकोर

 

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:28pm

जिंदगी की उधेड़-बुन पर शब्दों का ये बुनना चलता ही रहता है. इस पर कितनी सुंदर रचना. 

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:24pm

विशाल जी आपका हार्दिक धन्यवाद ....

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:24pm

अरुण शर्मा जी आपका हार्दिक धन्यवाद .......

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:23pm

सौरभ पांडे जी  आपका हार्दिक धन्यवाद , आपकी सराहना से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला है .....

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:35am

आदरणीया सर्वप्रथम ओ. बी. ओ. पर आपको देख कर ख़ुशी मिली, पहली प्रस्तुति ही बेहद सुन्दर है हार्दिक बधाई.

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on January 16, 2013 at 9:54pm

आपकी इस रचना में एक बहाव - शब्दों का सुन्दर ढंग से बुना जाना दिखा......सच में.....छंदमुक्त रचनाओं को अगर इसतरह से बुना जाये तो पढना बडा सुखकर लगता है.......उपासना जी हृदय से बधाई एवं ओबीओ परिवार में आपका स्वागत है !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2013 at 7:29pm

शब्द कर्म की अभिव्यक्ति होते हैं. सोच को शब्द देना और उस शब्द से सोच का उमगना, यही तो वृत्ति के अनुसार कर्म और पुनः कर्म से वृत्ति के होने का चिरंतन प्रक्रिया है.

’उधेड़-बुन’ को अच्छी अभिव्यक्ति मिली है, उपासबा जी. आपकी कोई पहली रचना देख रहा हूँ. आपका संप्रेषण सधा हुआ है. आपका इस मंच पर सादर स्वागत है.

Comment by upasna siag on January 16, 2013 at 6:28pm

बहुत -बहुत धन्यवाद राजेश जी , प्रदीप कुमार जी , राम शिरोमणि जी सराहना के लिए .....

Comment by ram shiromani pathak on January 16, 2013 at 5:29pm

उत्तम अति उत्तम 

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