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जिन्दगी तुझसे क्या सवाल करूँ

जिन्दगी तुझसे क्या

 सवाल करूँ , क्या शिकायत करूँ 

तुझसे जैसा चाहा

 वैसा ही पाया ........

फूल चाहे तो फूल ही मिले

फूलों में काँटों की शिकायत

तुझसे क्यूँ करूँ ,

मेरी तकदीर के  काँटों की 

 शिकायत  तुझसे क्यूँ करूँ ..........

सितारों भरा आसमान

चाहा तो भरपूर सितारे मिले

कुछ टूटे बिखरे सितारों की शिकायत

तुझसे क्यूँ करूँ ,

मेरी तकदीर के टूटे सितारों 

की शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ .....

जिंदगी हर कदम पर तूने 

दिया साथ मेरा ,

मंजिल पर आकर राह भटक  गयी 

शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ 

मंजिल के लिए तरसना मेरी तकदीर 

शिकायत तुझसे क्या करूँ ......

मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by Dr.Prachi Singh on January 18, 2013 at 3:42pm

अपने आज की पूरी ज़िम्मेदारी खुद लेना, शिकायतों से परे ............ सुन्दर भाव 

मंजिल पर आकर राह भटक  गयी 

शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ........सुन्दर भाव , इस रचना के लिए बधाई उपासना जी 

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:14pm

उपास्बा जी, भावों की कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी रचना में. 

''मंजिल पर आकर राह भटक  गयी 

शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ ''

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:26pm

राजेश कुमार झा जी ....सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ..

Comment by राजेश 'मृदु' on January 17, 2013 at 2:31pm

अच्‍छे भाव से ओत-प्रेत सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई

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