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आज चाँद दिखा आसमान में पूरा,

और वो बुढिया भी जो कात रही है,

सूत कई वर्षों से बैठी हुई तन्हा,

मैं हैरान हूँ, और परेशान भी,

क्या चाँद पर भी लोग हम जैसे ही रहते हैं,

क्या वहाँ भी बूढ़ों को यूं ही छोड़ दिया जाता है,

अकेला और तन्हा, विज्ञान कहता है कि,

कोई बुढ़िया नहीं रहती है चाँद पर,

पर मुझको तो मेरी माँ ने तो बचपन बताया था ,

सूत कातती उस बुढ़िया के बारे में,

वो चाँद मामा है हमारा हमने ये बचपन से सुना है,

तो क्या मेरी माँ को उसके घर का हाल मालूम न होगा,

मेरे मामा के घर कि ये बुढ़िया,

मेरी नानी तो नहीं है कहीं,

वो भी तो तन्हा ही रहती थी,

जब मेरे मामा के घर में थी........

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2012 at 10:01am

आपकी रचना ने मन को झकझोर दिया दिल तक मर्म पहुचाने में सफल हुई रचना हार्दिक आभार लिखते रहिये शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2012 at 9:14pm

प्रतीकों में इस रचना ने वह कुछ कहा है जो हृदय को भेद गया.. . मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ, पियूषजी.

Comment by पियूष कुमार पंत on October 3, 2012 at 8:19pm

आप सभी का हार्दिक शुक्रिया.......... 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 3, 2012 at 10:47am

बुजुर्गों के प्रति कैसे भाव कालांतर से चले आ रहे है, चाँद में दिख रहे चित्र और अपनी नानी दादी अम्मा से बचपन से सुन रहे-

कहानी के आदर पर कल्पना का सुन्दर चित्रं किया हां बधाई पियूष कुमार पन्त भाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 3, 2012 at 10:46am

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना आ. पियूष पन्त जी 

बुजुर्गों के प्रति हो रहे संवेदनहीन आचरण को सुन्दर बिम्बों के माध्यम से अभिवक्त किया है आपने. हार्दिक बधाई इस भावाभिव्यक्ति पर.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2012 at 8:52am

रचना झकझोर देने में सक्षम है, बिम्ब और प्रतिक के माध्यम से बहुत बड़ी बात कह गए है पियूष जी, बधाई स्वीकार करें |

Comment by satish mapatpuri on October 3, 2012 at 2:09am

सुन्दर प्रयास पियूष जी , विज्ञान और आस्था का सुन्दर चित्रण किया है आपने . बुजुर्गों के प्रति आपकी यह  सोच तारीफ़ के योग्य है ..... बधाई

कृपया ध्यान दे...

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