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==========ग़ज़ल==============

दिलो जिगर निसार दूं है गर हसीन आपसा
किसे न चाहिए यहाँ 'प' महजबीन आपसा

बिना मिले बिना सुने दिलो के हाल जान लूं
हुनर कमाल का लिए न दूरबीन आपसा

बदल रहे अजीब रंग बात बात पर गुमा
नहीं दिखा अभी तलक तमाशबीन आपसा

कभी मिला लिए हिजाब नाग आसतीन में
करे नहीं गिला अजीज जाँनशीन आपसा

बड़ी बड़ी इमारतें गिरी तबाह हो गयी
न क्यूँ रहा वतन परस्त पेशबीन आपसा

अदा हया समेट के नज़र से तीर छोड़ता
नकाब में रखे रिवाज नाजनीन आपसा

किताब एक दो नहीं पढ़ी हज़ार "दीप" पर 
न नाम ही मिला मुझे न नामचीन आपसा

संदीप पटेल "दीप"

Views: 409

Comment

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Comment by rajesh kumari on July 29, 2012 at 3:56pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है संदीप जी ...वाह 

Comment by Harash Mahajan on July 28, 2012 at 2:44pm

वाह क्या बात है संदीप जी बहुत ही उम्दा.... एक सुंदर कृति

Comment by Rekha Joshi on July 27, 2012 at 10:33pm

संदीप जी 

अदा हया समेट के नज़र से तीर छोड़ता 
नकाब में रखे रिवाज नाजनीन आपसा ,बेहद उम्दा ग़ज़ल ,बधाई 
Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 3:16pm

WAAH !

Comment by Vasudha Nigam on July 27, 2012 at 2:32pm

आपकी रचनाए पढ कर लिखने की प्रेरणा मिलती हैं । 

एक और सुंदर रचना पर बधाई... 

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