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रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,

ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।  

...................

हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,

मासूमियत अपनी हार गए पर जीवन की इस जंग में। 

...............................

बरसती हुई बूंदों ने आँख से आँसू भो छलका दिये,

बारिश का उसकी यादों से रिश्ता बड़ा पुराना हैं।

..................

मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,

जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम

..........................................................

 

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Comment

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Comment by Vasudha Nigam on September 25, 2012 at 9:43am

आभार सतीश जी 

Comment by Satish Agnihotri on September 21, 2012 at 1:54pm

खूबसूरती और सादगी का मिश्रण आपकी ये पंक्तियाँ वाकई कमाल है ...........

Comment by Vasudha Nigam on July 29, 2012 at 1:13pm

आदरणीय हराश जी एवं राज़ जी बहुत आभार 

Comment by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 11:44am

रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,

ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।  

 

बहुत खूब वसुधा जी !

Comment by Harash Mahajan on July 28, 2012 at 4:14pm

"

बरसती हुई बूंदों ने आँख से आँसू भो छलका दिये,

बारिश का उसकी यादों से रिश्ता बड़ा पुराना हैं।"

बहुत सुन्दर वसुधा जी ।

Comment by Vasudha Nigam on July 28, 2012 at 10:13am

आदरणीय मित्रजनों आप सभी का बहुत आभार, आपलोगो से ही प्रेरणा मिलती है

अभी बहुत सीखना है इस मंच पर।   

Comment by Rekha Joshi on July 27, 2012 at 10:30pm

मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,

जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम ,वसुधा जी अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 27, 2012 at 4:40pm

मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,

जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम....sunder bhawana.se yukt gazal...

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 3:10pm

वाह
वसुधा जी
वाह !

Comment by Vasudha Nigam on July 27, 2012 at 2:59pm

धन्यवाद अरुण जी एवं सुरेन्द्र जी, 

आप सब से ही सीखने का प्रयत्न कर रही हूँ। 

कृपया ध्यान दे...

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