शीशे की तरह दिल में, इक बात साफ़ है,
ये दिल दिल्लगी के, बिलकुल खिलाफ है,
खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,
लगने लगी है सर्दी, अश्कों में भीगने से,
इतना हल्का हो गया, तन का लिहाफ है,
हर आस मर चुकी है, बस सांस ऑन है,
और दिल भी जल-२ के, बुझ हुआ ऑफ है,
मौत है कि बक्श देती है, मुझको बार-बार,
तेरे बाद जिंदगी में, अब जीने का खौफ है,
Comment
मित्र संदीप जी ,
मेरा मकसद आपको पीड़ा पहुँचाने का कतई नहीं था. मैंने आपके हृदय को आहत किया क्षमा प्राथी हूँ.
प्रिय अरुण जी, वास्तव में सभी शेर दिल से ही कहे हैं आपने ..........जिसके लिए दिली मुबारकबाद स्वीकारें......परन्तु काम सिर्फ दिल से ही नहीं चलता अपितु दिलोदिमाग से ही चलता है .....अतः गज़ल में काफिया रदीफ़ के निर्वहन के साथ साथ बह्र का विन्यास, तनाफुर, तकाबुले रदीफ़, इता, सिनाद, शुतुर्गुर्बा आदि देखना भी बहुत आवश्यक है ! जिसका पालन आपकी इस गज़ल में नहीं हो सका है ....अधिक जानकारी के लिए ओ बी ओ पर आदरणीय तिलकराज जी की गज़ल की कक्षा में प्रवेश लें.....
बचपन में पढ़ा हुआ एक दोहा आपको समर्पित है .....
मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय.
औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय..
सस्नेह
मुझे लगता था मित्र कह देना ही काफी होता है
ये बताने के लिए की दिल है या नहीं
बहरहाल आपको मेरी शुभकामनाएं दिल से लिखते रहिये
रही दिमाग की बात तो वो तो शारदे की कृपा से कितना है ये आपको बताने की आवश्यकता नहीं है
मुझे आपने अपशब्द कहे हैं वो आप कभी वापस नहीं ले सकेंगे
किन्तु समय बलवान है आपकी गलतियाँ आपको स्वतः जबाब दे देंगी की गलती तो गलती होती है
छोटी अपितु बड़ी नहीं
और हाँ दिल में आग भर के भाई जैसे शब्दों का अपमान ना करें
हाँ मुझसे जो गलती हुई है आपको मित्र कह देने की उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
संदीप भाई,
लगता है मुखमंडल में आग रखते हो,
सीने में दिल नहीं, दिमाग रखते हो.
माफ़ कीजिये संदीप जी मुझे महसूस हो रहा है की आपके पास दिल नहीं दिमाग है, क्यूंकि त्रुटियाँ दिल में नहीं दिमाग में होती है. मन तो सदैव शुद्ध रहता है कभी मन से पढियेगा अच्छा लगेगा. क्यूंकि मैं दिल से लिखता हूँ दिमाग से नहीं.
आदरणीया रेखा जी और आदरणीय भ्रमर जी आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई. तहे दिल से शुक्रिया बस अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये मुझपर.
खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,
हाँ अनंत जी ऐसे ही प्यार में सौ खून माफ़ ...सुन्दर गजल ..हिंदी अंग्रेजी का तड़का .... और दिल भी जल-२ के, बुझा हुआ ऑफ है,
मौत है कि बक्श देती है, मुझको बार-बार,
तेरे बाद जिंदगी में, अब जीने का खौफ है,,क्या बात है अरुण जी ,बहुत खुबसूरत गजल ,बधाई
इस ग़ज़ल में बहुत कमियाँ हैं मित्रवर
मैं समीक्षा करने में स्वयं अभी असमर्थ हूँ सीख रहा हूँ
गुरुजन इसकी समीक्षा अवश्य करेंगे समय मिलते ही
मेरी और से बधाई स्वीकार कीजिये
अलबेला SIR आपको पसंद आई, शुक्रिया
bahut pyari aur umda gazal kahi aapne
waah !
achha laga baanch kar
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