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अँधेरा मुझमे सो रहा है, माँ तेरे बिन,
डर को मुझमे बो रहा है, माँ तेरे बिन,


घर में घुस आईं हैं, धूल लेकर आंधियां अब,
कि जीना मुस्किल हो रहा है, माँ तेरे बिन,

ठोकरें लौट आई हैं, भर कर पत्थर राहों में,
नज़रों से उन्जाला खो रहा है, माँ तेरे बिन,

उखाड़ दी खिड़कियाँ, दरवाजा भी तोड़ डाला,
जहाँ घर का सामान ढो रहा है माँ तेरे बिन,

तकलीफ कैसे बांधूं, शब्दों में नहीं ताकत,   
अश्क मुझको धो रहा है, माँ तेरे बिन,

उंगली पकड़ चला दो, क़दमों में नही बल है,
देख तेरा बेटा रो रहा है, माँ तेरे बिन.......

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 11:20am

आदरणीय अम्बरीश जी, आपको ये रचना पसंद आई बहुत आभारी हूँ. जैसे की आपने मुझे बताया है मैं नित नियम प्रयास कर रहा हूँ त्रुटियों को दूर करने में. ओ. बी. ओ. से जुड़ने के बाद बहुत कुछ सीखा है.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 11:06am

//उंगली पकड़ चला दो, क़दमों में नही बल है,
देख तेरा बेटा रो रहा है, माँ तेरे बिन.......//

अरुण जी,  माँ ही सब कुछ है इसे ...बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने ! बधाई स्वीकारें ! फिर भी इस रचना में शिल्प के स्तर पर सुधार की बहत गुंजायश है....सतत अभ्यास जारी रखें धीरे-धीरे शिल्प भी आ जाएगा ..... . सस्नेह

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:53am

आदरणीय भ्रमर जी, मित्र आशीष जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:53am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, रेखा जी और दीप्ति जी. आपको अच्छा लगा और आपने सराहना की. शुक्रिया

Comment by आशीष यादव on July 13, 2012 at 12:19am

माँ के बिन, जिन्दगी सचमुच अवलम्बहीन लगने लगती है। आपने बखूबी लिखा है। बहुत-बहुत बधाई।

Comment by Rekha Joshi on July 13, 2012 at 12:05am

सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई अरुण जी 

Comment by deepti sharma on July 12, 2012 at 10:48pm

तकलीफ कैसे बांधूं, शब्दों में नहीं ताकत,   
अश्क मुझको धो रहा है, माँ तेरे बिन,

उंगली पकड़ चला दो, क़दमों में नही बल है,
देख तेरा बेटा रो रहा है, माँ तेरे बिन....

बहुत ही सुंदर रचना बधाई आपको

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 12, 2012 at 10:23pm

घर में घुस आईं हैं, धूल लेकर आंधियां अब,
कि जीना मुस्किल हो रहा है, माँ तेरे बिन,

ठोकरें लौट आई हैं, भर कर पत्थर राहों में, 
नज़रों से उन्जाला खो रहा है, माँ तेरे बिन, 

अनन्त जी ...सटीक हालात दर्शाती और जोश भरती रचना ...शब्दों पर थोडा ध्यान रखें  ...बधाई 

.मुश्किल , उजाला 

 

भ्रमर ५  ..

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Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 10:20pm

बहुत भावनात्मक दिल को छू गई रचना 

कृपया ध्यान दे...

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