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रात आई
काली चुनरी ओढ़ के
नीले व्योम को ढँक लिया
घुप्प अँधेरा,
सन्नाटे बातें करते हैं
हवाओं से
दूर से आती हैं कुछ आवाजें
डरावनी सी भयानक सी
कानों में खुसफुसाती हैं
जिस्म में उठती है सरसराहट
लेकिन ये क्या
किसी ने ये क्या किया
झिलमिल कर जगमगा उठे
अनगिनत टिमटिमाते दीप
अँधेरे को मिटा के
बिखेर दी रौशनी
जमीं रंगीं
आसमान रोशन हो उठा
पर ये कौन है
जिसने किया है
आकाशगंगा पर "दीपदान"
आखिर कौन है ????

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by Harish Bhatt on July 7, 2012 at 11:04am

संदीप जी सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 6, 2012 at 11:03pm

किसी ने ये क्या किया 
झिलमिल कर जगमगा उठे 
अनगिनत टिमटिमाते दीप 
अँधेरे को मिटा के 
बिखेर दी रौशनी 
जमीं रंगीं
आसमान रोशन हो उठा 

प्रिय संदीप जी जिसने सब रोशन किया उसे नमन ....ये रौशनी जगमगाती रहे सदा सदा बाह्य और अन्तः जगत में भी ..खूबसूरत उड़ान आप की ..भ्रमर ५ 

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 6, 2012 at 7:22pm

रात आई
काली चुनरी ओढ़ के
नीले व्योम को ढँक लिया
घुप्प अँधेरा,

किसी ने ये क्या किया
झिलमिल कर जगमगा उठे
अनगिनत टिमटिमाते दीप
अँधेरे को मिटा के
बिखेर दी रौशनी

सुन्दर रचना ...कहाँ से आया ये प्रकास ?यही है जो पुरे संसार को प्रकाशित कर रहा है  नायाब

.खुसफुसाती..शब्द के जगह (फुसफुसाती )होना चाहिए शायद

Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 6:16pm

संदीप जी ,

बहुत खूब ,बहुत सुंदर ,तमस से उजाले की ओर ले जाते दीप दान ,बधाई 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 6, 2012 at 5:54pm

ये कौन है
जिसने किया है
आकाशगंगा पर "दीपदान"
आखिर कौन है ????

सम्मान्य संदीप जी, बहुत खूबसूरत चित्रण निशा का, खामोशी में सुनाई देती हवा की सरसराहट का........फिर दीपदान... बहुत बहुत सुन्दर.
हार्दिक बधाई इस रचना पर. सादर.

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